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________________ ( २१० । उ. हंता, गोयमा ! अत्थि। दं.३-११.एवं जाव थणियकुमाराणं। दं.१२-१९. पुढविकाइयाणं जाव चउरिदियाणं एएसिं . जहा नेरइयाणं। । द्रव्यानुयोग-(१)) उ. हां, गौतम ! (विनय भक्ति) है। दं. ३-११. इसी प्रकार स्तनितकुमारों पर्यन्त जानना चाहिए। दं. १२-१९. जिस प्रकार नैरयिकों के लिए कहा है, उसी प्रकार पृथ्वीकाय से चतुरिन्द्रिय पर्यन्त के जीवों के लिए जानना चाहिए। प्र. दं. २०. भंते ! क्या पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों में सत्कार, सम्मान यावत् जाते हुए के पीछे जाना आदि विनयभक्ति है? उ. हां, गौतम ! है, परन्तु इनमें आसनाभिग्रह या आसनाऽनुप्रदान रूप विनय भक्ति नहीं है। दं. २१-२४. जिस प्रकार असुरकुमारों के विषय में कहा, उसी प्रकार मनुष्यों से वैमानिकों पर्यन्त कहना चाहिए। प. दं. २०. अत्थि णं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं सक्कारे इ वा जाव गच्छंतस्स पडिसंसाहणया? उ. हता, गोयमा ! अस्थि, नो चेवणं आसणाभिग्गहे इ वा, आसणाणुप्पणाणे इवा। दं. २१-२४. मणुस्साणं जाव वेमाणियाणं जहा असुरकुमाराणं। -विया. स.१४, उ.३, सु.४-९ १०५. चउवीसदंडएसु उज्जोय-अंधयारं तेसिं हेउ य परूवणं- प. से नूणं भंते ! दिया उज्जोए, राइं अंधकारे? उ. हंता, गोयमा ! दिया उज्जोए,राइं अंधकारे। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'दिया उज्जोए,राइं अंधकारे?' उ. गोयमा ! दिया सुभा पोग्गला, सुभे पोग्गलपरिणामे, राई असुभा पोग्गला, असुभे पोग्गलपरिणामे से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ 'दिया उज्जोए,राइं अंधकारे।' प. दं.१.नेरइयाणं भंते ! किं उज्जोए, अंधकारे? उ. गोयमा ! नेरइयाणं नो उज्जोए,अंधकारे। १०५. चौबीसदंडकों में उद्योत, अंधकार और उनके हेतु का प्ररूपणप्र. भन्ते ! क्या दिन में उद्योत (प्रकाश) और रात्रि में अंधकार होता है? उ. हां, गौतम ! दिन में उद्योत और रात्रि में अंधकार होता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि ‘दिन में उद्योत और रात्रि में अंधकार होता है?' उ. गौतम ! दिन में शुभ पुद्गल होते हैं और शुभ पुद्गल परिणाम होता है किन्तु रात्रि में अशुभ पुद्गल होते हैं और अशुभ पुद्गल परिणाम होता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि 'दिन में उद्योत और रात्रि में अंधकार होता है।" प्र. दं.१. भंते ! नैरयिकों के (निवासस्थान में) उद्योत होता है या अंधकार होता है? उ. गौतम ! नैरयिक जीवों के (स्थान में) उद्योत नहीं होता, (किन्तु) अंधकार होता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'नैरयिकों के (स्थान में) उद्योत नहीं होता किन्तु अंधकार होता है?' उ. गौतम ! नैरयिक जीवों के अशुभ पुद्गल होते हैं और अशुभ पुद्गल परिणाम होता है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि'नैरयिकों के उद्योत नहीं होता किन्तु अंधकार होता है।' प्र. दं. २. भंते ! असुरकुमारों के क्या उद्योत होता है या अंधकार होता है? उ. गौतम ! असुरकुमारों के उद्योत होता है, अंधकार नहीं होता है। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि 'असुरकुमारों के उद्योत होता है अंधकार नहीं होता है। प. से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'नेरइयाणं नो उज्जोए,अंधकारे?' उ. गोयमा ! नेरइयाणं असुभा पोग्गला, असुभे पोग्गलपरिणामे, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ "नेरइयाणं नो उज्जोए, अंधकारे। प. दं.२.असुरकुमाराणं भंते ! कि उज्जोए, अंधकारे? उ. गोयमा ! असुरकुमाराणं उज्जोए, नो अंधकारे। प. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'असुरकुमाराणं उज्जोए, नो अंधकारे?'
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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