SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीव अध्ययन प. एएसि णं भंते ! जीवाणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं, उत्तरगुणपच्चक्खाणीणं अपच्चक्खाणीण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा। सव्वत्थोवा जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी अणंतगुणा। प. एएसि णं भंते ! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं मूलगुण पच्चक्खणीणं, उत्तरगुणपच्चक्खाणीणं, अपच्चक्खाणीण यकयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुण पच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा। प. एएसि णं भंते ! मणुस्साणं मूलगुणपच्चक्खाणीणं, उत्तरगुणपच्चरखाणीणं, अपच्चक्खाणीण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा? उ. गोयमा ! सब्वत्थोवा मणुस्सा मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी संखेज्जगुणा, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा। -विया. स.७ उ.२ स.९-१६ ७७. जीव-चउवीसदंडएसु सव्वदेसमूलोत्तरगुण पच्चक्खाणी आइ परूवणंप. जीवाणं भंते ! किं सब्बमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुण पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी? उ. गोयमा ! जीवा सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी वि, देस मूलगुणपच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि। प. द. १. नेरइयाणं भंते ! किं सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी? उ. गोयमा ! नेरइया नो सव्वमूलगुणच्चक्खाणी, नो देसमूलगुणपच्चक्खाणी,अपच्चक्खाणी। दं.२-१९ एवं जाव चउरिदिया। प. दं. २०. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! किं सब्बमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्रवाणी, अपच्चक्खाणी? उ. गोयमा ! पंचेदियतिरिक्खजोणिया, नो सव्वमूलगुण पच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चरवाणी वि, अपच्चक्खाणी वि। दं.२१.मणुस्सा जहा जीवा। - १७५ ) प. भंते ! मूलगुणप्रत्याख्यानी, 'तरगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी इन जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! सबसे अल्प जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, (उनसे) उत्तरगुणप्रत्याख्यानी असंख्यातगुणे हैं, (उनसे) अप्रत्याख्यानी अनन्तगुणे हैं। प. भंते ! इन मूलगुणप्रत्याख्यानी, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी जीवों में पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? उ. गौतम ! मूलगुणप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव सबसे अल्प हैं, (उनसे) उत्तरगुणप्रत्याख्यानी असंख्यातगुणे हैं। (उनसे) अप्रत्याख्यानी असंख्यातगुणे हैं। प. भंते ! इन मूलगुणप्रत्याख्यानी, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी जीवों में मनुष्य कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? उ. गौतम ! मूलगुणप्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे अल्प हैं, (उनसे) उत्तरगुणप्रत्याख्यानी संख्यातगुणे हैं। (उनसे) अप्रत्याख्यानी असंख्यातगुणे हैं। ७७. जीव-चौवीस दंडकों में सर्वदेश मूलोत्तरगुण प्रत्याख्यानी आदि का प्ररूपणप. भंते ! क्या जीव सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी देशमूलगुण प्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी हैं? उ. गौतम ! जीव (समुच्चय में) सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं। प. द. १. भंते ! क्या नैरयिक जीव सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी हैं? उ. गौतम ! नैरयिक जीव सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी और देशमूलगुणप्रत्याख्यानी नहीं हैं किन्तु अप्रत्याख्यानी हैं। द.२-१९. इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय पर्यन्त कहना चाहिए। प. दं. २०. भंते ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव क्या सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी हैं? __. उ. गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्च योनिक सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी नहीं हैं किन्तु देशमूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं। द. २१. मनुष्यों के लिए (औधिक) जीवों के समान कहना चाहिए। दं.२२-२४. वाणव्यन्तर ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए नैरयिकों के समान कहना चाहिए। प. भंते ! इन सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं? दं.२२-२४. वाणमंतर जोइस वेमाणिया जहा नेरइया। प. एएसि णं भंते ! जीवा णं सब्बमूलगुणपच्चक्खाणीणं, देसमूलगुणपच्चक्खाणीणं अपच्चक्खाणीण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा जाव विसेसाहिया वा?
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy