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________________ १०८ प. सेकेणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जीवदव्वा णं, नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता?" उ. गोयमा ! असंखेज्जा णेरइया, असंखेज्जा असुरकुमारा जाव असंखेज्जा थणियकुमारा, असंखेज्जा पुढवीकाइया जाव असंखेज्जा वाउकाइया, अणंता वणस्सइकाइया, असंखेज्जा बेइन्दिया, असंखेज्जा तेइंदिया, असंखेज्जा चउरिंदिया, असंखेज्जा पंचेन्दियतिरिक्खजोणिया, असंखेज्जा मणूसा, असंखेज्जा वाणमंतरिया, असंखेज्जा जोइसिया, असंखेज्जा वेमाणिया, अणंता सिद्धा, द्रव्यानुयोग-(१) प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कह जाता है कि "जीवद्रव्य संख्यात नहीं हैं, असंख्यात नहीं हैं, किन्तु अनन्त हैं ?" गौतम ! असंख्यात नारक हैं, असंख्यात असुरकुमार यावत असंख्यात स्तनितकुमार देव हैं, असंख्यात पृथ्वीकायिक जीव हैं यावत् असंख्यात वायुकायिक जीव हैं, अनन्त वनस्पतिकायिक जीव हैं, असंख्यात द्वीन्द्रिय हैं, असंख्यात त्रीन्द्रिय हैं, असंख्यात चतुरिन्द्रिय हैं, असंख्यात पंचेन्द्रियतिर्यञ्च योनिक हैं, असंख्यात मनुष्य हैं, असंख्यात वाणव्यंतर देव हैं, असंख्यात ज्योतिष्क देव हैं, असंख्यात वैमानिक देव हैं और अनन्त सिद्ध हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि "जीवद्रव्य संख्यात नहीं हैं, असंख्यात भी नहीं हैं किन्तु अनन्त हैं।" ८. क्षुद्र प्राणियों के छह प्रकार क्षुद्र प्राणी छह प्रकार के कहे गए हैं, यथा१. द्वीन्द्रिय, २. त्रीन्द्रिय, ३. चतुरिन्द्रिय, ४. सम्मूर्छिम पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक, ५. तेजस्कायिक, ६. वायुकायिक। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जीवदव्वा णं नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता।"१ -अणु.सु.४०४ ८. खुड्ड पाणाणं छव्विहत्तं छव्विहा खुड्डा पाणा पण्णत्ता,तं जहा१. बेइंदिया, २.तेइंदिया, ३.चउरिंदिया, ४. संमुच्छिमपंचेन्दियतिरिक्खजोणिया,२ ५. तेउकाइया, ६. वाउकाइया। -ठाणं..अ.६, सु.५१३ ९. हत्थिस्स य कुंथुस्स य सम जीव पएसत्त परूवणं प. से नूणं भंते ! हथिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे? उ. हता, गोयमा ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे। प. कम्हाणं भंते ! हत्थिस्स य कुंथुस्स य समे चेव जीवे? उ. गोयमा ! से जहाणामए कूडागारसाला सिया जाव गंभीरा, अह णं केइ पुरिसे जोइं व दीवे व गहाय तं कूडागारसालं अंतो-अंतो अणुपविसइ, तीसे कूडागारसालाए सव्वओ समंता घणनिचिय निरंतर निच्छिड्डाई दुवार-वयणाई पिहेइ पिहेत्ता तीसे कूडागारसालाए बहुमज्झदेसभाए तं पईवं पलीवेज्जा। तए णं से पईवे तं कूडागारसालं अंतो-अंतो ओभासइ, उज्जोवेइ, तवइ, पभासेइ नो चेव णं बाहिं। अह णं से पुरिसं तं पईवं इड्डरएणं पिहेज्जा,तए णं से पईवे तं इड्डरयं अंतो-अंतो ओभासेइ जाव पभासेइ, नो चेव णं इड्डुगरस्स बाहिं, नो चेव णं कूडागारसालं, नो चेव णं कूडागारसालाए बाहिं। एवं गोकिलिंजेणं पच्छिपिंडएणं गंडमाणियाए आढएणं अद्धढएवं, पत्थएणं अद्धपत्थएणं कुलवेणं अद्धकुलवेणं चाउब्भाइयाए अट्ठभाइयाए सोलसियाए बत्तीसियाए चउसट्ठियाए दीवचंपएणं पिहेज्जा। तए णं से पईवे ९. हाथी और कुंथु के सम जीव प्रदेशत्व का प्ररूपण प्र. भंते ! क्या वास्तव में हाथी और कुंथुए का जीव समान है ? उ. हां, गौतम ! हाथी और कुंथुए का जीव समान है। प्र. भंते ! हाथी और कुंथुए का जीव समान कैसे हो सकता है ? उ. गौतम ! जैसे कोई कूटागारशाला हो, जो यावत विशाल और गंभीर हो और कोई एक पुरुष उस कूटागारशाला में अग्नि और दीपक के साथ घुसकर उसके ठीक मध्य भाग में खड़ा हो जाए। तत्पश्चात् उस कूटागारशाला के सभी द्वारों के किवाड़ों को इस प्रकार सटाकर अच्छी तरह बंद कर दे कि जिससे किंचित्मात्र भी सांध छिद्र न रहे । फिर उस कूटागारशाला के बीचोबीच उस प्रदीप को जलाये। तब जलाने पर वह दीपक उस कटागारशाला के अन्तर्वर्ती भाग को ही प्रकाशित. उद्योतित,तापित और प्रभासित करता है किन्तु बाहरी भाग को प्रकाशित नहीं करता है। अब यदि वही पुरुष उस दीपक को एक विशाल पिटारे से ढक दे तो दीपक कूटागारशाला की तरह उस पिटारे के भीतरी भाग को ही प्रकाशित करेगा किन्तु पिटारे के बाहरी भाग को प्रकाशित नहीं करेगा। इसी प्रकार गोकिलिंज (गाय को घास रखने का पात्र) पच्छिकापिटक (पिटारी) (गंडमाणिका) अनाज को मापने का बर्तन (आढ़क) (चार सेर धान्य मापने का पात्र) अर्धाढक. प्रस्थक, अर्धप्रस्थक कुलव, अर्धकुलव, चतुर्भागिका, १. विया.स.२५, उ.२, सु.३ २. ठाणं.अ. ४, उ.४, सु.३५१ (३)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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