SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ १. "रूवीअजीवपज्जवा नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता ?" उ. गोयमा ! अनंता परमाणुपोग्गला, अनंता दुपदेसिया खंधा जाव अणंता दसपदेसिया खंधा । अणंता संखेज्जपदेसिया खंधा अणंता असंखेज्जपदेसिया खंधा, अनंता अणतपदेसिया खंधा। से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ "रूवीअजीवपज्जवा नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अनंता।"१ - ८. परमाणुपोग्गलाणं पज्जवपमाणं प. परमाणुपोग्गलाणं भंते ! केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! परमाणुपोग्गलाण अनंता पञ्जवा पण्णत्ता। प. से केणद्वेगं भते ! एवं बुच्चइ "परमाणुपोग्गलाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?" उ. गोयमा ! परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स(१) दव्वट्टयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्टयाए तुल्ले, (४) ठिइए - १. सिय हीणे, २. सिय तुल्ले, ३. सिय अब्भहिए। - पण्ण. प. ५, सु. ५००-५०३ १. सिय हीणे, ३. सिय अन्महिए। जड़ हीणे १. असंखेज्जइभागहीणे वा, २. संखेज्जइभागहीणे वा, ३. संखेज्जगुणहीणे वा ४. असंखेज्जगुणहीणे था। अह अन्महिए १. असंखेज्जइभाग अब्भहिए वा, २. संखेज्जइभाग अब्धहिए था, ३. संखेज्जगुण अहिए था, ४. असंखेज्जगुण अब्भहिए था । कालवण्णपरजवेडिं २. सिव तुल्ले, जड़ हीणे १. अनंतभागहीणे वा, २. असंखेज्जइभागहीणे वा, ३. संखेज्जइभागहीणे वा । अणु. कालदारे. सु. ४00-४०३. द्रव्यानुयोग - (१) "रूपी अजीवपर्याय संख्यात और असंख्यात नहीं हैं किन्तु अनन्त हैं ?" उ. गौतम ! परमाणु- पुद्गल अनन्त हैं, द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं यावत् दशप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, संख्यातप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं, असंख्यातप्रदेशिक स्कन्थ अनन्त हैं, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध अनन्त हैं। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"रूपी अजीव पर्याय संख्यात और असंख्यात नहीं हैं किन्तु अनन्त हैं।" ८. परमाणु पुद्गलों के पर्यायों का परिमाण प्र. भंते! परमाणु पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? उ. गौतम ! परमाणु पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि"परमाणु पुद्गलों के अनन्त पर्याय है?" उ. गौतम एक परमाणु पुद्गल, दूसरे परमाणु पुद्गल से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा- १. कदाचित् हीन है, २. कदाचित् तुल्य है, ३. कदाचित् अधिक है। यदि हीन है तो १. असंख्यातवां भाग हीन है, २. संख्यातवां भाग हीन है, ३. संख्यातगुण हीन है. ४. असंख्यातगुण हीन है। यदि अधिक है तो १. असंख्यातवां भाग अधिक है, २. संख्यातवां भाग अधिक है, ३. संख्यातगुण अधिक है, ४. असंख्यातगुण अधिक है। कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा१. कदाचित हीन है, ३. कदाचित अधिक है। यदि हीन है तो १. अनन्तवां भाग हीन है, २. असंख्यातवां भागहीन है, ३. संख्यातवां भाग हीन है। २. कदाचित तुल्य है,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy