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________________ पर्याय अध्ययन (१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसठ्ठयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए, (५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, (९) आभिणिबोहियणाणपज्जवेहिं तुल्ले, सुयणाणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए, (१०) चक्खुदंसणपज्जवेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ"जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता।" एवं उक्कोसाभिणिबोहियणाणी वि। णवरं-ठिईए तिट्ठाणवडिए। तिण्णि णाणा, तिण्णि दंसणा, सट्ठाणे तुल्ले, सेसेसु छट्ठाणवडिए। अजहण्णुक्कोसाभिणिबोहियणाणी जहा उक्कोसाभिणिबोहियणाणी। णवरं-ठिईए चउट्ठाणवडिए। सट्ठाणे छट्ठाणवडिए। एवं सुयणाणी वि। (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है (४) स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस, (८) स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (९) आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, श्रुतज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है, (१०) चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि"जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के अनन्त पर्याय हैं।" इसी प्रकार उत्कृष्ट आभिनिबोधिक ज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिको के पर्याय भी कहने चाहिए। विशेष-स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है तीन ज्ञान और तीन दर्शन में से स्वस्थान में तुल्य है, शेष सब में षट्स्थानपतित है। मध्यम आभिनिबोधिक ज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के पर्याय भी उत्कृष्ट आभिनिबोधिक ज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के समान कहना चाहिए । विशेष-स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। आभिनिबोधिक ज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के पर्यायों के समान श्रुतज्ञानी के लिए भी कहना चाहिए। प्र. भंते ! जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के कितने पर्याय कहे गए हैं? उ. गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गये हैं। प्र. भंते ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के अनन्त पर्याय हैं?". उ. गौतम ! एक जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक दूसरे जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक से(१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है (२) प्रदेशों की अपेक्षा (भी) तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है, (४) स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है, (५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस, (८) स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा, (९) आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा षट्स्थानपतित है। अवधिज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है। (इसमें) अज्ञान नहीं कहना चाहिए। प. जहण्णोहिणाणीणं भंते ! पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प. सेकेणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णोहिणाणीणं पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता?" उ. गोयमा ! जहण्णोहिणाणी पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिए जहण्णोहिणाणिस्स पंचेंदिय-तिरिक्खजोणियस्स(१) दव्वट्ठयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिए, (४) ठिईए तिट्ठाणवडिए, (५) वण्ण,(६) गंध,(७) रस,(८) फासपज्जवेहिं, आभिणिबोहियणाण - सुयणाणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिए, ओहिणाणपज्जवेहिं तुल्ले, अण्णाणा णत्थि,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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