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________________ ४६ ६. चउवीसदंडएसु जहष्णुकोसाइ ओगाहणाइविवक्खया पज्जवपमाणपरूवणं द. १. नेरइयाणं ओगाहणाइ विवक्खया पज्जव पमाणं प. जहण्णोगाहणगाणं भंते! नेरइयाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ? उ. गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता । प. से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ "जहण्णोगाहणगाणं नेरयाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता ?" उ. गोयमा ! जहण्णोगाहणए नेरइए जहण्णोगाहणगस्स नेरइयस्स (१) दव्ययाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्टयाए तुल्ले, (४) ठिईए चउट्ठाणवडिए । (५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, (८) फासपज्जवेहिं, (९) तिहिं णाणपज्जवेहिं, (१०) तिहिं अण्णाणपज्जवेहिं, (११) तिहिं दंसणपज्जवेहिं य छट्ठाणवडिए । से तेत्रेण गोयमा ! एवं युच्चद्द"जहण्णोगाहणगाणं पण्णत्ता ।" प. उक्कोसोगाहणगाणं भंते ! नेरइयाणं केवइया पज्जया पण्णत्ता ? नेरद्रयाणं अनंता पज्जवा उ. गीयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। प से केणद्वेणं भंते ! एवं युच्चइ "उक्कोसोगाहणगाणं नेरइयाणं नेरइयाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?" उ. गोयमा ! उक्कोसोगाहणए णेरइए उक्कोसोगाहणस्स नेरइयम्ग (१) दव्वड्डयाए तुल्ले, (२) पदेसट्टयाए तुल्ले, (३) ओगाहणट्टयाए तुल्ले । (४) ठिईए - १. सिय हीणे, २. सिय तुल्ले, ३. सिय अब्भहिए। ही दुट्ठाणवडिए - १. असंखेज्जइभागहीणे वा २. संखेज्जइभागहीणे वा 7 अह अब्भहिए-दुट्ठाणवडिए - १. असंखेज्जभाग अब्भहिए वा, २. संखेज्जभाग अब्भहिए वा ।' (५) वण्ण, (६) गंध, (७) रस, 9. द्विस्थान पतित का सर्वत्र यह अर्थ जानना चाहिए। द्रव्यानुयोग - (१) ६. चौवीस दण्डकों में जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना आदि की विवक्षा से पर्यायों के परिमाण का प्ररूपण १. नैरयिकों के अवगाहनादि की अपेक्षा से पर्यायों का परिमाण प्र. भंते ! जघन्य अवगाहना वाले नैरयिकों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गये हैं। उ. प्र. भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि " जघन्य अवगाहना वाले नारकों के अनन्त पर्याय हैं ?" उ. गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला नैरयिक दूसरे जघन्य अवगाहना वाले नैरयिक से उ. प्र. (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा (भी) तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा (भी) तुल्य है, (४) स्थिति की अपेक्षा चतुधान पतित है, (५) वर्ण, (६) गन्ध, (७) रस और (८) स्पर्श के पर्यायों, (९) तीन ज्ञान, (१०) तीन अज्ञान, (११) तीन दर्शन पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। इस कारण से गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि " जघन्य अवगाहना वाले नारकों के अनन्त पर्याय हैं।" प्र. भंते ! उत्कृष्ट अवगाहना वाले नैरयिकों के कितने पर्याय कहे गये हैं ? गौतम ! अनन्त पर्याय कहे गए हैं। भंते! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि "उत्कृष्ट अवगाहना वाले नैरयिकों के अनन्त पर्याय हैं ?" उ. गौतम ! एक उत्कृष्ट अवगाहना वाला नारक, दूसरे उत्कृष्ट अवगाहना वाले नारक से (१) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, (२) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है, (३) अवगाहना की अपेक्षा (भी) तुल्य है। (४) स्थिति की अपेक्षा - १. कदाचित हीन है, २. कदाचित् तुल्य है. ३. कदाचित अधिक है। यदि हीन है तो-दो स्थान पतित हैं १. असंख्यातवें भाग हीन है २ संख्यातवें भाग हीन है। यदि अधिक है तो दो स्थानपतित है १. असंख्यातवें भाग अधिक है, २. संख्यातवें भाग अधिक है। (५) वर्ग (६) गन्ध, (७) रस और
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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