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________________ अस्तिकाय अध्ययन आकाश या आकाशास्तिकाय. गगन, नभ, सम, विषम, खह, विहायस्, वीचि, विवर, अम्बर, अम्बरस, छिद्र, शुषिर, मार्ग, विमुख, अर्द, व्यर्द, आधार, व्योम, भाजन, अन्तरिक्ष, श्याम, अवकाशान्तर अगम, स्फटिक और अनन्त ये और इसी प्रकार के जितने भी दूसरे शब्द हैं वे सब आकाशास्तिकाय के अभिवचन हैं। प्र. भंते ! जीवास्तिकाय के कितने अभिवचन कहे गए हैं? आगासे इ वा, आगासऽस्थिकाए इ वा, गगणे इ वा, नभे इ वा, समे इ वा, विसमे इ वा, खहे इ वा, विहे इ वा, वीयी इ वा, विवरे इ वा, अंबे इ वा, अंबरसे इ वा, छिड्डे इ वा, झुसिरे इ वा, मग्गे इ वा, विमुहे इ वा, अद्दे इ वा, वियद्दे इ वा, आधारे इ वा, वोमे इ वा, भायणे इ वा, अंतरिक्खे इवा, सामे इ वा, ओवासंतरे इ वा, अगमे इ वा, फलिहे इ वा, अणंते इ वा, जे यावऽन्ने तहप्पगारा, सव्वे ते आगासऽस्थिकायस्स अभिवयणा। प. जीवऽत्थिकायस्स णं भंते! केवइया अभिवयणा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता, तं जहा जीवे इ वा, जीवऽस्थिकाए इ वा, पाणे इ वा, भूए इ वा, सत्ते इ वा, विण्णू इ वा, चेया इ वा, जेया इ वा, आया इ वा, रंगणे इ वा, हिंडुए इ वा, पोग्गले इ वा, माणवे इ वा, कत्ता इ वा, विकत्ता इ वा, जए इ वा, जंतू इ वा, जोणी इ वा, सयंभू इ वा, ससरिरी इवा, नायए इ वा, अंतरप्पा इवा, जे यावऽन्ने तहप्पगारा, सव्वे ते जीवऽस्थिकायस्स अभिवयणा। प. पोग्गलऽस्थिकायस्स णं भंते! केवइया अभिवयणा पण्णत्ता? उ. गोयमा! अणेगा अभिवयणा पण्णत्ता, तं जहा पोग्गले इ वा, पोग्गलऽस्थिकाए इ वा, परमाणुपोग्गले इ वा, दुपएसिए इ वा, तिपएसिए इ वा जाव-संखेज्जपएसिए इवा, असंखेज्जपएसिए इ वा, अणंतपएसिए इ वा खंधे, जे यावऽन्ने तहप्पगारा, सव्वे ते पोग्गलऽस्थिकायस्स अभिवयणा, -विया, स. २०,उ.२,सु.४-८ ४. पंचण्हमत्थिकायाणं पमाणं प. धम्मत्थिकाएणं भंते! के महालए पण्णत्ते? उ. गोयमा! लोए, लोयमेत्ते, लोयप्पमाणे, लोयफूडे, लोयं चेव फुसित्ताणं चिट्ठइ, उ. गौतम ! अनेक अभिवचन कहे गए हैं, यथा जीव या जीवास्तिकाय, प्राण, भूत, सत्व, विज्ञ, चेता, जेता, आत्मा, रंगण, हिण्डुक, पुद्गल, मानव, कर्ता, विकर्ता, जगत्, जन्तु, योनि, स्वयम्भू, सशरीरी, नायक और अन्तरात्मा, ये और इसी प्रकार के जितने भी दूसरे शब्द हैं वे सब जीवास्तिकाय के अभिवचन हैं। प्र. भंते ! पुद्गलास्तिकाय के कितने अभिवचन कहे गए हैं ? उ. गौतम ! अनेक अभिवचन कहे गए हैं, यथा पुद्गल या पुद्गलास्तिकाय, परमाणु-पुद्गल, द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् संख्यातप्रदेशी असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी स्कन्ध, ये और इसी प्रकार के जितने भी दूसरे शब्द हैं वे सब पुद्गलास्तिकाय के अभिवचन हैं। ४. पांचों अस्तिकायों का प्रमाण प्र. भंते ! धर्मास्तिकाय कितना बड़ा कहा गया है? उ. गौतम ! धर्मास्तिकाय लोकरूप है, लोकमात्र है, लोक-प्रमाण है, लोकस्पृष्ट है और लोक को ही स्पर्श करके रहा हुआ है। इसी प्रकार १. अधर्मास्तिकाय, २. लोकाकाश, ३. जीवास्तिकाय और ४. पुद्गलास्तिकाय। इन पांचों के सम्बन्ध में एक समान अभिलाप (पाठ) जानना चाहिए। एवं १. अधम्मत्थिकाए, २. लोयागासे, ३. जीवत्थिकाए, ४. पोग्गलत्थिकाए, पंचवि एक्काभिलावा। -विया.स.२, उ.१०,सु. १३, १. विया. स. २०, उ. २, सु. २ (ख)
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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