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________________ द्रव्य अध्ययन प. केवइएहिं आगासऽत्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा ? उ. तेणेव संखेज्जएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं, प. केवइएहिं जीवऽस्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा ? उ. अणंतेहिं पएसेहिं पुठ्ठा, प. केवइएहिं पोग्गलऽस्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा ? उ. अणंतेहिं पएसेहिं पुट्ठा, प. केवइएहिं अद्धा-समएहिं, पुट्ठा ? उ. सिय पुट्ठा, सिय नो पुट्ठा, जइ पुट्ठा, नियम अणंतेहिं समएहिं पुट्ठा, प. असंखेज्जा भंते! पोग्गलऽस्थिकायप्पएसा केवइएहिं धम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा ? उ. गोयमा !जहण्णपए तेणेव असंखेज्जपएणं दुगुणेणं दुरूवाहिएणं, उक्कोसपए तेणेव असंखेज्जपएणं पंचगुणेणं दुरूवाहिएणं, सेसंजहा संखेज्जाणंजाव नियम अणंतेहिं पएसेहिं पुट्ठा। प. अणंता भंते ! पोग्गलऽस्थिकायप्पएसा केवइएहिं धम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुट्ठा? उ. गोयमा । जहा असंखेज्जा, तहा अणंता वि निरवसेसं। - १७ । प्र. भंते ! (पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं? उ. उन्हीं संख्यात प्रदेशों को पाँच गुणे करके उनमें दो और अधिक जोड़ें, उतने प्रदेशों से वे स्पृष्ट होते हैं। प्र. (पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं? उ. अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। प्र. (पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश) पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं? उ. अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। प्र. (पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश) अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट होते हैं? - उ. कदाचित् स्पृष्ट होते हैं और कदाचित् स्पृष्ट नहीं होते हैं। यदि स्पृष्ट होते हैं तो अनन्त समयों से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते! पुद्गलास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? उ. गौतम! जघन्य पद में उन्हीं असंख्यात प्रदेशों को दुगुने करके उनमें दो (संख्या) और जोड़ें, उतने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। उत्कृष्ट पद में उन्हीं असंख्यात प्रदेशों को पाँच गुणे करके उनमें दो और जोड़ दें, उतने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। शेष सभी वर्णन संख्यात प्रदेशों के समान यावत् नियमतः अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। प्र. भंते! पुद्गलास्तिकाय के अनन्त प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं? उ. गौतम! जिस प्रकार असंख्यात प्रदेशों के विषय में कहा, उसी प्रकार अनन्त प्रदेशों के विषय में भी समस्त कथन कहना चाहिए। प्र. भंते! अद्धाकाल का एक समय धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. गौतम! वह सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (अद्धाकाल का एक समय) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. पूर्ववत् (धर्मास्तिकाय के समान) जानना चाहिए। इसी प्रकार आकाशास्तिकाय के प्रदेशों के लिए भी कहना चाहिए। प्र. (अद्धाकाल का एक समय) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (अद्धाकाल का एक समय) पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है. प्र. (अद्धाकाल का एक समय) अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट होता है? उ. कदाचित् स्पृष्ट होता है और कदाचित् स्पृष्ट नहीं होता है। यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त समयों से स्पृष्ट होता है। प. एगे भंते।अद्धासमए केवइएहिं धम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? उ. गोयमा। सत्तहिं पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं अधम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? उ. एवं चेव, एवं आगासऽस्थिकाएहिं पएसेहिं वि, प. केवइएहिं जीवऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? उ. अणंतेहिं पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं पोग्गलऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? उ. अणतेहिं पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं अद्धासमएहिं पुढे ? उ. सिय पुढे, सिय नो पुढे, जइ पुढे नियम अणंतेहिं समएहिं पुढे,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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