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________________ उ. गोयमा !जहेव धम्मत्थिकाये। एवं जाव अहेसत्तमा। सोहम्मे एवं चेव। एवं जाव ईसिपब्भारा पुढवी । -विया. स. २५, उ. ४, सु. २४-२७ १५. पंचत्थिकाय-पएस-अद्धासमयाणं परोप्परं पएसफुसणा परूवणंप. एगे भंते ! धम्मऽथिकाय-पएसे केवइएहिं धम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? उ. गोयमा !जहण्णपए तीहि पएसेहिं पुढे, ___उक्कोसपए छहि पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं अधम्मऽत्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? उ. जहण्णपए चउहि पएसेहिं पुढे, उक्कोसपए सत्तहिं पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं आगासऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? उ. सत्तहिं पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं जीवऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? उ. अणंतेहिं पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं पोग्गलऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? द्रव्यानुयोग-(१) उ. गौतम ! धर्मास्तिकाय के समान इसका कथन करना चाहिए। इसी प्रकार अधःसप्तमपृथ्वी पर्यन्त जानना चाहिए। सौधर्म देवलोक के विषय में भी यही कथन करना चाहिये। इसी प्रकार (ईशान देवलोक से) ईषत्यागभारा पृथ्वी पर्यन्त भी कथन करना चाहिए। १५. पंचास्तिकाय प्रदेशों और अद्धासमयों का परस्पर प्रदेश स्पर्श प्ररूपणप्र. भंते ! धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. गौतम ! वह जघन्य तीन प्रदेशों से, उत्कृष्ट छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. जघन्य चार प्रदेशों से, उत्कृष्ट सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. सात (आकाश) प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. अनन्त (जीव) प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट होता है? उ. कदाचित् स्पृष्ट होता है और कदाचित् नहीं होता है। यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त समयों से स्पृष्ट होता है। प्र. भंते ! अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. गौतम ! वह जघन्य चार प्रदेशों से, उत्कृष्ट सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। प्र. (अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. जघन्य तीन प्रदेशों से, उत्कृष्ट छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के वर्णन के समान समझना चाहिए। प्र. भंते ! आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है? उ. गौतम ! कदाचित् स्पृष्ट होता है और कदाचित् स्पृष्ट नहीं होता है। यदि स्पृष्ट होता है तो जघन्य एक, दो, तीन या चार प्रदेशों से और उत्कृष्ट सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। उ. अणंतेहिं पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं अद्धासमएहिं पुढे ? उ. सिय पुढे, सिय नो पुढे,जइ पुढे, नियम अणंतेहिं पुढे, प. एगे भंते! अधम्मऽत्थिकाय - पएसे केवइएहिं धम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? उ. गोयमा !जहण्णपए चउहि पएसेहिं पुढे, उक्कोसपए सत्तहिं पएसेहिं पुढे, प. केवइएहिं अधम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? उ. जहण्णपए तीहिं पएसेहिं पुढे, उक्कोसपए छहिं पएसेहिं पुढे, सेसंजहा धम्मऽथिकायस्स, प. एगे भंते ! आगासऽत्थिकाय-पएसे केवइएहिं धम्मऽस्थिकाय-पएसेहिं पुढे ? उ. गोयमा ! सिय पुढे, सिय नो पुढे, जइ पुढे जहण्णपए एक्केण वा, दोहिं वा, तीहिं वा, चउहिं वा पुढे, उक्कोसपए सत्तहिं पुढे,
SR No.090158
Book TitleDravyanuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj & Others
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year1994
Total Pages910
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size32 MB
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