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परिशिष्ट १
पृष्ठ ४६९
ग्राम-राम वसीकरणाईनं पायच्छित सुताई सूत्र ७२२.क्यू गायारविवयं अलीकरे, अतीकरता (ख)
साइज्जइ ।
जे नि
ग्राम रक्षक को वश में करने आदि के प्रायश्चित्त सूत्र
पृष्ठ ४५८ सूत्र ७४६.
गामारविक्रयं [अच्चीकरे, बच्चो
या साइज्जइ ।
जे भिक्खू गरमा रक्खियं अत्थोकरे, अत्यीक वा
साइज्जइ ।
तं सेवमाणे आवज्जद उचाइयं ।
पृष्ठ ४६६
रणा रक्क्षय सीरवाणं पापच्छिल मुसाई
सूत्र ७२२. (ग) में भिक्खू खणार विखयं अत्तोकरे, अतीक
साइज्जइ ।
मासि परिहारट्ठा
- नि. उ. ४, सु. ४०-४२
पृष्ठ ४७४
क्रिस पंचमहालगा
सूत्र ७२५
जे भिक्खु रण्णारस्वियं अधीक रेड, अच्ची करतं वा साइज्जइ ।
जे भिक्यू रण्णारक्खियं अस्थीकरेड, अत्यीक वा साइज्जइ ।
तं सेवमध्ये बावज्जद मासियं परिहारद्वाणं उग्धादयं । -नि. उ. ४, सु. ४६-४८
उम्म
सायं हि सत्यादागाई लोगंसि तं विज्जं परिजाणिया || - सू. सु. १, आ. ६, मा. १०
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पृष्ठ ४६६
राज्य रक्षक को वश में करने आदि के प्रायश्चित -- वा सूत्र ७२२. (ग) जो भिक्षु राज्य रक्षक को अपने वश में करता है या वग में करने वाले का अनुमोदन करता है ।
गुणकीर्तन करता है या
जब विहराहि जोग, अयाणा पंचा दुतरा । असासनमेव पक्कने, वीरेह सम्पदेयं सू. सु. ६, अ. २, उ. १ मा ११
४०) रणोलिया मुदियानं मुद्धामा मंसखायाण वर, मच्छ-खाण वा छविखायाण
पृष्ठ ४६६
ग्राम रक्षक को वश में करने आदि के प्रायश्चित्त सूत्र - ७२२. (क्षक को अपने पक्ष में करता है या वश में करने वाले का अनुमोदन करता है ।
सूत्र
जो भिक्षु ग्राम रक्षक की प्रशंसा गुण कीर्तन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
जो भिक्षु ग्राम रक्षक को अपनी तरफ आकृष्ट करता है या आकृष्ट करने वाले का अनुमोदन करता है।
उसे मासिक उपातिक (परिहारस्थान ) प्रायश्वित आता है।
जो भिक्षु राज्य रक्षक की करने वाले का अनुमोदन करता है।
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जो भिक्षु राज्य रक्षक ने अपनी तरफ आकृष्ट करता है या आकृष्ट करने वाले का अनुमोदन करता है ।
पृष्ठ ४७४
भिक्षु के पांच महतोंका
उसे सामिपातिक परिहारस्थान प्राि आता है।
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सूत्र ७२५ (घ) असत्य भाषण, स्त्री एवं परिग्रह का ग्रहण, बिना दिये वस्तु लेना एवं प्राणी हिया से लोक में वध के स्थान है। विद्वान् मुनि इन्हें जानकर इनका त्याग करे। पृष्ठ ४८८
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सूत्र ७४६. हे पुरुष तू यत्न करता हुआ, पचि सनिति और तीन गुप्ति से युक्त होकर विचरण कर, क्योंकि सूक्ष्मप्राणियों से परिपूर्ण मार्ग को उपयोग और यतना के बिना पार करना दुष्कर है। अतः ग्रास्त्र में या जिनशासन में संयम पालन की जो प्रेति बताई है, उसके अनुसार संयम पथ पर चलना चाहिए । सभी तीर्थकरों ने इसी का ही सम्यक् प्रकार से उपदेश दिया है। पृष्ठ ५६२
पृष्ठ ५१२
बहिया निवारा आहार व पायच्छित सुतं बाहर गये हुए राजा के आहार ग्रहण करने का प्राय
स्थित सूत्र-
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व
सूत्र ९४७) आदि खाने लिये बाहर गये हुए शुद्ध वंशज मूर्द्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा के