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________________ सूत्र ९६२-६६४ सचिस अंब उपमोग के प्रायश्चित्त मूत्र चारित्राचार : एषणा समिति [५८१ से मिक्लू पा, भिक्षुणी वा से ज्नं पुण अंबं भिक्ष, या भिक्षणी यदि यह जाने किजाणेज्जाअप्प-जाव---मक्कडासंताण, तिरिच्छिन्न यह आम, अण्डे-यावत्-मकडी के जाला से रहित है वोच्छिन और तिरछा कटा हुआ है एवं जीव रहित हो गया है। फासुयं--जाव-पडिपाहेमा । ऐसे आम को प्रासुक जानकर-यावत्-पहण करे । से भिक्खू वा भिक्खूणी वा अभिकखेज्मा भिध या भिक्ष गी--- १. अंबमित्तगं बा, २. अंवपेप्सियं पा, ३. अंवसोयगं (१) आम की मोटी फांके, (२) लम्बी फॉर्क, (३) आम पा, ४. अंबसासगं वा, ५. अंबडगलं व भोत्तए वा, का फंदा, (४) आम की छाल या, (५) आम के टुकड़े दा।। पायए वा। चाहें या उसका रस पीना चाहें, से उज पुनः आमा --विस स------ तोपराने कि आम की मोटी 'फा - सावत्-टुकड़े अंबरगलं वा स जाव-मक्कडा संताणगं अण्हे --यावत्-मकड़ी के जालों से युक्त हैंअफासुर्घ-जाव-गो पविगाहेज्जा अतः उन्हें अप्रासुक जानकर यावत् --ग्रहण न करे ।। से भिषयू वा, भिक्खूणी वा से नं पुण जाणेज्जा--- भिक्ष या भिक्ष पी यदि यह जाने किअंजभितगं या-जाव-अंबडगलं वा अप्पंड...-जाब आम की मोटी फांके यावत्---आम के टुकड़े अण्ड --मक्कडा संतागर्ग अतिरिच्छचिठन अबोसिकन्न । -यावत्-मकड़ी के जालों से रहित है किन्तु तिरछे कटे हुए नहीं हैं तथा जीव रहित हुए नहीं हैं। अफामुयं - जाथ-णो पशिगाहेज्जा भतः उन्हें अप्रासुका जानकर यावत्-ग्रहण न करें।। से भिक्णू वा, भियगी वा से नपुण जाणेज्जा- भिक्ष या भिक्षणी यदि यह जाने किअंगभित्तगंगा-जाव-अंबडगल वा अप्पं-जाव- आम की मोटी फांकें यावत्-आम के टुकड़े अण्डे मक्कडा संताणगं, तिरिच्छच्छिम वोच्छिा फासुर्य --यावर - मकड़ी के जालों से रहित हैं वे तिरछे कटे हुए है -जाव-पडिगाहेज्जा। और जीव रहित हो गये हैं तो प्रामुक जानकर-पावत्-- -आ. सु. २, अ. ७, उ. २, सु. ६२३-६२८ ग्रहण करें। सचित्तं अंबं भुजमाणस्स पायच्छित्त-सुत्ताई सचित्त अंब उपभोग के प्रायश्चित्त सूत्र१६४. मे मिक्चू सचित्तं अंबं मुंजा, भुतं वा साइज्जइ । १६४. जो भिक्षु मचित्त आम खाता है, खिलाता है, खाने वाले का अनुमोदन करता है। में भिषय सचितं अंवं विडसह, विसंतं वा साइब्जद । जो भिक्ष सचित्त आम चूमता है, चूंमनाता है, चंसने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिवडू सचित्त-पइदिएं अब मुजद, भजतं वा साइजह। जो भिक्षु सचित्तप्रतिष्ठित बाम को खाता है, खिलाता है, खाने वाले का अनुमोदन करता है। मे मिन्यू सचित्त-पइट्टियं बवं विडसइ, विसंत वा साइ- जो भिक्ष, सचित्तप्रतिष्ठित आम को ससा है, चूंसवाता है, चूसने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू सचित, जो भिक्ष सचित१. अंवा , २, अंबं-पेसि वा, ३. अंब-भितंबा, ४.ग- (१) आम को, (२) आम की फांक को, (३) आम के अई सालगं दा, ५, अंब-गलं वा, ६. बव-चोयगं या. मुजइ, भाग को, (४) आम की छाल को, (५) आम के गोल टुकड़े को, मुंजतं वा साहज्जा। (६) आम के छोटे-छोटे टुकड़ों को स्वाता है, खिलाता है, वाने वाले का अनुमोदन करता है। * मिक्खू सचित अंगा-जाव-अंबसोयग वा विरसा जो भिक्षु सचित्त बाम मो-पावत्-आम को छोटे-छोटे विसंतं वा साजरा टुकड़ों को घूसता है, पूंनवाता है, चूंसने वाले का अनुमोदन करता है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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