________________
{ བ་། उपलब्ध पाठयों का त्यों रख देना तथा का रूप नहीं है, हमारी श्रुत भक्ति त को व्यवस्थित एवं शुद्ध रूप में प्रस्तुत करने में है। कभी-कभी एक पाठ का मिलान करने व उपयुक्त - पाठ निर्धारण करने में कई दिन व कई सप्ताह भी लग जाते हैं किन्तु विद्वान अनुसंधाता उसको उपयुक्त रूप में ही प्रस्तुत करता है, आज इस प्रकार के आगम- सम्पादन की आवश्यकता है । अस्तु,
मैं अपनी शारीरिक अस्वस्थता के कारण, विद्वान सहयोगी की कमी के कारण, तथा परिपूर्ण साहित्य की अनुपलब्धि तथा समय के अभाव के कारण जैसा संशोधित शुद्ध पाठ देना चाहता था वह नहीं दे सका, फिर भी मैंने शुक्र सम्बे-लम्बे समाय पद जिनका उच्चारण दुरूह होता है, तथा उच्चारण करते समय अनेक आगम पाठी भी उच्चारण-दोष से ग्रस्त हो जाते हैं। वैसे दुरुह पाठों को सुगम रूप में प्रस्तुत कर छोटे-छोटे पद बनाकर दिया जाय व ठीक उनके सामने ही उसका अर्थ दिया जाय जिससे अर्थ बोध सुगम हो । यद्यपि जिस संस्करण का मूल पाठ लिया है हिन्दी अनु बाद भी प्रायः उन्हीं का लिया है फिर भी अपनी जागरूकता बरती है। कहीं-कहीं उचित संशोधन भी किया है। उपर्युक्त तीन संस्थाओं के अलावा आगमोदय समिति रतलाम तथा सुतागने (पुष्कभिक्खु जी) के पाठ भी उपयोगी हुए हैं। पूज्य अमोलक ऋषि जो म० एवं आचार्य श्री आत्माराम जी म द्वारा सम्पादित अनुदित आगमों का भी यथावश्यक उपयोग किया है।
मैं उक्त आगमों के सम्पादक विद्वानों व श्रद्ध ेय मुनिबरों के प्रति आभारी हूँ । प्रकाशन संस्थाएँ भी उपकारक हैं। उनका सहयोग कृतज्ञ भाव से स्वीकारना हमारा कर्तव्य है ।
अव प्रस्तुत ग्रन्थ चरणानुयोग के विषय में भी कुछ कहना चाहता हूँ । चरणानुयोग
आगमों का सार आधार है-अंग कार ? आदारी ! - आचारांग आगम सो अंगों का सारभूत आगम है ही, किन्तु आचार अर्थात् "चारित्र" यह आगम का, त का सार है। ज्ञानस्य फलं विरक्ति:- " ज्ञान का फल विरति है। अत का सार चारित्र है। अतः चारित्र सम्बन्धी विवरण आगमों में यत्र-तत्र बहुत अधिक मात्रा में मिलता है। यूं भी कहा जा सकता है कि "चारित्र" का विषय सबसे विशाल तथा व्यापक है।
:
धर्मकयानुयोग के समान चरणानुयोग भी वर्णन की दृष्टि से विस्तृत है। अतः इसकी सामग्री अनुमान से अधिक हो गई है। इसलिए इसे दो भागों में विभक्त किया गया है।
२.
"आचार" के प्रमुख पांच विभाग हैं- १. ज्ञानागार, दर्शनाचार, ३. चारित्राचार ४ तपाचार, ५. वीर्याचार वर्णन की दृष्टि से पारित्राचार सबसे विशाल है। प्रस्तुत भाग में ज्ञानाचार एवं दर्शनाचार का वर्णन तो २०४ पृष्ठों में ही आ गया है | चारित्राचार का वर्णन ५४० पृष्ठ होने पर भी पूर्ण नहीं हुआ है। पाँच महात्रत, पांच समिति तीन गुप्ति ( प्रवचन माता) इनका अष्ट वर्णन ही प्रथम भाग में पूर्ण हो सका है। संयम, समा चारी, संघ व्यवस्था, श्रावकाचार आदि अनेक महत्वपूर्ण विषय दूसरे भाग में प्रकाशित हो रहे हैं। साथ ही चरणानुयोग की तुलनात्मक विस्तृत प्रस्तावना सूची सन्दर्भ स्थलों की निर्देशिका आदि द्वितीय भाग में दिये जा रहे हैं।
:
मैने इस बात का भी ध्यान रखा है कि जो पिय आगमों में अनेक स्थानों पर आया है, वहाँ एक आगम का पाठ मूल में देकर बाकी आगम पाठ तुलना के लिये टिप्पणियों में दिये जायें। जिससे तुलनात्मक दृष्टि से पड़ने वालों को उपयोगी हो । अनेक पाठों के अर्थ में भ्रांति होती है, वहाँ टीका भाग्य आदि का सहारा लेकर पाठ का अर्थ भी स्पष्ट किया गया है, व्याख्या का अन्तर भी दर्शाया है। कुछ गाठों की पूर्ति के लिए वृति, सूणि भाग्य आदि का भी उपयोग किया है।
इस प्रकार पूरी सावधानी बरती है कि जो विषय जहाँ हैं, यह अपने आप में परिपूर्ण हो, इसलिए उसके समान, पूरक तथा भाव स्पष्ट करने वाले अन्य आगमों के पाठ भी अंकित किये हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि आगम ज्ञान के प्रति रुचि श्रद्धा व भक्ति रखने वाले पाठकों को वह चरणानुयोग उनकी जिज्ञासा को तृप्त करेगा, ज्ञान की वृद्धि करेगा तथा श्रत भक्ति को और अधिक सुर बनायेगा ।
सम्पादित साहित्य का शुद्ध रूप में मुद्रण हो-यह भी परम आवश्यक है। अनुयोग प्रायों के शुद्ध व सम्यक् रीति से मुद्रण कार्य में रीति से मुद्रण कार्य में श्रीयुत श्रीचन्द जी गुराना "सरस" का भी महत्वपूर्ण सहयोग रहा है।
अन्त में इस महान कार्य में प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग देने वाले सभी सहयोगी जनों के प्रति हार्दिक भाव से कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ ।
Q