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________________ ४४२] परगानुयोग बालजीव र कर्म करते हैं। सूत्र ६७५ ६७६ बाला फूरकम्माई कुव्वंति बालजीव र कर्म करते हैं५७५. ततो से एगया रोगसमुपाया समुप्पज्जति । ६७५. कभी एक समय ऐसा आता है, जब उस अर्थ-संग्रही मनुष्य के शरीर में (भोग-काल में) अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। हि वा सठि संवसप्ति से वर्ष एगया णिगया पुलिंग परि- वह जिनके साथ रहता है, वे ही स्व-जन एकदा (रोगग्रस्त बयंति, सो वा ते णियए पच्छा परिवएग्जा। होने पर) उसका तिरस्कार व निन्दा करने लगते हैं। बाद में वह भी उनका तिरस्कार व निन्दा करने लगता है। णालं ते तव ताणाए वा सरणाए वा। हे पुरुष ! वे स्वजनादि तुसे त्राण देने में, शरण देने में समर्थ नहीं हैं। तुम पितेसि गातं तापाए वा सरगाए वा । तू भी उन्हें त्राण या शरण देने में समर्थ नहीं है। जाणितु दुपवं पत्तेयं सायं । दुःस्त्र और सुख प्रत्येक आत्मा का अपना अपना है, यह जानकर (इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करे)।। मोगामेन अणुसोधति, कुछ मनुष्य, जो इन्द्रियों पर विजय प्राप्त नहीं कर पाते, दे वार-बार भोग के विषय में ही (ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की तरह) सोचते रहते हैं। इहमेगेसि माणवाणं तिविहेप बावि से तत्प पता भवति यहाँ पर कुछ मनुष्यों को (जो विषयों की चिन्ता करते हैं ।) अप्पा वा स्नुषा वा। (तीन प्रकार से) अपने, दूसरों के अथवा दोनों के सम्मिलित प्रयत्न से अल्प या बहुत अर्थ-मात्रा (धन-सम्पदा) हो जाती है। से तस्य गतिते चिट्ठति भोयनाए। बह फिर उस अर्थ-माषा में आसक्त होता है। भोग के लिए उसकी रक्षा करता है। तमो से एगया विपरिसिद्ध संभूतं महोवकरणं मति तं पि भोग के बाद बची हुई दिपुल सम्पत्ति के कारण वह महान् से एगया बायावा विभयंति, अवत्तहारो वा सेवहरंति, वैभव वाला बन जाता है। फिर जीवन में कभी ऐसा समय रायाणो वा से विलुपंति, पस्सति वा से, विसति वा से. आता है जब दामाद हिस्सा बंटाते हैं, चोर उसे चुरा लेते हैं, अगारवाहेणं वा से जाति । राजा उसे छीन लेते हैं, वह अन्य प्रकार से नष्ट-विनष्ट हो जाती है । गृह दाह आदि से जलकर भस्म हो जाती है । इति से परस्स अट्ठाए कूराईकम्माई बाले पकुवमाणे तेण अज्ञानी मनुष्य इस प्रकार दूसरों के लिए अनेक ऋ रकम तुम्खेण मूठे विप्परिपासमुवेति। करता हुआ (दुःख के हेतु का निर्माण करता है) फिर दुःखोदय -बा. सु. १, अ. २,उ. ४, सु. ५१.२ होने पर वह मूढ़ बनकर विपर्यास भाव को प्राप्त होता है । भूवा धम्मं न जाणंति मूर्ख धर्म को नहीं जानते हैं६७६. पीमि सोए पहलहिते । ६७६, यह संसार स्त्रियों के द्वारा पराजित है (अथवा प्रव्यथित पीड़ित है) ते मो! यति एयाहं आयतणाई। है पुरुषो! वे (स्त्रियों से पराजित जन) कहते हैं --"ये स्त्रियाँ आयतन हैं।" (भोग की सामग्री है)। से गुपचाए मोहाए माराए गरगाए मरणतिरिक्खाए। (किन्तु उनका) यह कथन-धारणा दुःख के लिए एवं मोह मृत्यु, नरक तथा नरकान्तर तिर्यंचगति के लिए होता है। सततं मूवे धम्म लामिजापति। सतत मूत्र रहने वाला मनुष्य धर्म को नहीं जान पाता। पाहगीरे-अप्पमा महामोहे, भगवान् महावीर ने कहा है---"महामोह" में अप्रमत्त रहे। अर्थात् विषयों के प्रति अनासक्त रहे।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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