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दाणानुपोग
अश्यतीधिक या गृहस्थ के कृमि निकालने का प्रायश्चित पूत्र
सूत्र ३८७-३६१
सूत्र
अण्णउत्थियस्स गारस्थियस्स किमिणिहरणस्स पायपिछत्त- अन्यतीथिक या गृहस्थ के कृमि निकालने का प्रायश्चित्त
सुत्तं३७. भिक्खू अण्णउस्थियरस वा, गारस्थियास वा, ३८७. जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थों के-- पासु-किमियं षा, कुच्छि-किमियं ग,
गुदा के कृमियों को और कुक्षि के कृमिमों को अंगुलीए निवेसिय नियेसिय,
उंगली डाल-डालकर, मोहरह, मोहरतं वा साइजह ।
निकालता है, निकलवाता है, या निकालने वाले का अनु
मोदन करता है। त सेवमाणे आवग्न बाउमासियं परिहारदाणं अगुग्धाइयं। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि.उ. ११, सु. ३५ माता है ।
आरम्भजन्य कार्य करने के प्रायश्चित्त-६
दगणालियाकरण पायच्छित्त सुतं--
पानी बहने की नाली निर्माण करने का प्रायश्चित्त सूत्र१८. भिक्खू बगवीणियं
३८८, जो भिक्षु पानी बहने की नाली का निर्माणसयमेव करत करत वर साइजद ।
स्वयं करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन
करता है। त सेवमाणे आवाहमासिपं परिहारट्ठाणं उबाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
--नि. उ. २, सु. ११ आता है। सिक्कग-कर-पायच्छित्त सुत्तं
छों का निर्माण करण प्रायश्चित्त सूत्र३६. जे भिक्खू सिरकगं वा, सिक्कगणंतगं वा,
३८६, जो भिक्षु छींका तथा छीके की डोरियों का निर्माणसयमेव करेह करतं वा साइजइ ।
स्वयं करता है, करवाता है, करने वाले का अनुमोदन
करता है। त सेवमाणे भावजई मासियं परिहारहाणं उम्पादयं । असे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ. २, सु. १२ आता है। पचमगाइकरण पायपिछत्त सुत्तं
पदमार्गादि निर्माण करने का प्रायश्चित्त सूत्र-- ३९०. जे भिक्खू पयममा या, संकम बा, मालंजणं वा, ३९०. जो भिक्षु पदमार्ग, संक्रमणमार्ग या पालम्बन का सयमेव करेड, करतं वा साइज्जद ।
स्वयं निर्माण करता है, करवाता है, करने वाले का अनु
मोदन करता है। तं तेवमाणे भावग्मइ मासियं परिहारठाणं डाघाइयं। उसे लघु-मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि. उ. २, सु. १० आता है। पयमग्गाइ णिम्माण करण पायच्छित सुसं
पदमार्गादि निर्माण सम्बन्धी प्रायश्चित्त सूत्र३६१. जे मिक्खू पदमागं वा, संकम वा, अवलंबकं या
३६१.जो भिक्षु अन्यतीथिक से या गृहस्थ मे
पगडण्डी, पुल या अबलम्बन का, अण्णबल्पिएण मा, गारस्थिएग वा कारेहकारत वा साइजह। निर्माण करवाता है, करवाने वाले का अनुमोदन करता है।