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प्रत्र ३५६.३६०
गृहस्प से वग-परिफर्म नहीं कराना चाहिए
चारित्राचार
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मिहत्थेण वणपरिकम्मो न कायन्यो
गृहस्थ से व्रण-परिकम नहीं कराना चाहिए३५६. से से परो कार्यसि वणं आमज्जेज्ज वा, पमज्जेग्ज वा, णो ३५६. कदाचित् कोई गृहस्थ, साधु के शारीर पर हुए व्रण को तं सातिए, जो तं णियमे।
एक बार पोंछे या बार-बार अच्छी तरह से पोंछकर साफ करे तो साधु उरो मन से भी न चाहे और न वचन और काया से
प्रेरणा करे। से से परो कार्यसि वर्ण संबाहेज्ज वा, पलिमद्देज्ज वा, पोतं कदाचित् कोई गृहस्थ साधु के शारीर गर हुए प्रण को दबाए सातिए, यो तं णियमे ।
या अच्छी तरह मर्दन करे तो लाधु उसे मन से भी न चाहे, वचन
एवं काया से प्रेरणा भी न करे। से से परो कार्यसि वणं तेल्लेण वा घएण या बसाए वा कदाचित् कोई गृहस्थ साधु के शरीर में हुए व्रण के ऊपर मक्खेज या भिलगेग्न घा, णो त सातिए णो तं णियमे। तेल, घी या वसा चुपड़े मसले, लगाए या मर्दन करे तो साधु
उसे मन से भी न चाहे, वचन एवं काया से प्रेरणा भी न करे। से से परो कार्यसि वणं लोण वा कक्केण वा चुग्णेण स कदाचित् कोई गृहस्थ साधु के शरीर पर व्रण को लोध धणेण मा उल्लोलेज वा, उध्वट्ठज्ज वा, णो ते सातिए, कल्क पूर्ण या वर्ग आदि विलेपन द्रव्यों का आनंपन-विलेपन करे गोतं णियमे।
तो साधु उसे मन से भी न चाहे, वचन एवं कामा से प्रेरणा
भी न करे। से से परो कार्यसि यण सीतोदगवियोण वा उसिणोदग- कदाचित् कोई गृहस्थ, साधु के शरीर पर हुए व्रण को विपकेप वा उच्छोलेज्म वा पधोवेज्ज वा, गो तं सातिए, प्रासुक शीतल जल या उष्ण जल से एक बार या बार-बार धोये गोतं णियमे ।
तो साधु उसे मन से भी न चाहे, वचन एवं काया से प्रेरणा
भी न करे। से से परो कार्यसि वर्ण अण्णतरेणं सत्यजाएणं अच्छिवेम्म वा कदाचित् कोई गृहस्थ, साधु के पारीर पर हुए प्रण को विच्छिदेज्ज वा, णो तं सातिए, यो त णियमे।
किसी प्रकार से शस्त्र से थोड़ा-सा छेदन करे या विशेष रूप से छेदन करे तो साधु उसे मन से भी न चाहे, वचन एवं काया से
प्रेरणा भी न करे। से से परो कार्यसि वणं अग्णतरेणं सत्यजातेषं अच्छिवित्ता कदाचित् कोई गृहस्थ, साधु के शरीर पर हुए वण को किसी पर विच्छिवित्ता वा पूर्व वा सोगियं का मोहरेग्ज वा, विसो- विणेष शस्त्र से थोड़ा-सा विशेष रूप से छेदन करके उसमें से हेज वा, गोतं सातिए, गोतं गियमे ।
मवाद या रक्त निकाले या उसे साफ करे तो साधु उसे मन से -आ. सु. २, अ. १३, सु. ७०५-७१३ भी न चाहे, वचन एवं काया से प्रेरणा भी न करे। निहत्थेण गंडाईणं परिकम्मो न कायम्वो
गृहस्थ से गण्डादि का परिकर्म नहीं कराना चाहिए३१०. से से परो कार्यसि गंई का अरइयं वा पुलयं वा भगवसं वा ३६०. कदाचित् कोई गृहस्थ, साधु के शरीर में हुए गण्ड', अर्श, आमज्जेज वा, पमम्जेज वा, पोतं सातिए, णो संगियमे। पुलक अथवा भगंदर को एक बार या बार-बार साफ करे तो
साधु उसे मन से भी न चाहे, वचन एवं काया से प्रेरणा
भी न करे। से से परो कार्यसि गंडे या-जाव-भगवलं या संवाहेज वा यदि कोई गहस्थ, साधु के शरीर में हुए गण्ड-पावत्पलिमदेज्ज वा, णो तातिए. णो संणियमे ।
भगन्दर को दबाये या परिमर्दन करे तो साघु उसे मन से भी न
चाहे, वचन एवं काया से प्रेरणा भी न करे । से से परो कार्यसि गं वा-जाव-भगवतं वा हेल्लेण वा घएग यदि कोई गृहस्थ, साधु के शरीर में हुए गण्ड-चापदजाधसाए वा मपवेज वा मिलिगेज था, जो तं सातिए, जो भगन्दर पर तेल, घी, बसा चुपड़े, मले या मालिश करे तो साधु जियमे।
उसे मन से भी न चाहे, वचन एवं काया से प्रेरणा भी न करे।