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पुण्डरीक सम्बन्धी दृष्टान्त गष्टास्तिक की योजना
बनाधार परिशिष्ट
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होते हैं। इसी प्रकार अजीवादि शेष : के प्रत्येक के बीस-बीस भेद समझने चाहिए। यों नौ ही पदार्थों के २.xe=१८० भेद क्रियावादियों के होते हैं।' (8) अफ्यिाबाव
अक्रियाबाद के ८४ भेद होते हैं, वे इस प्रकार हैं-जीव आदि ७ पदार्थों को क्रमशः लिखकर उसके नीचे (१) स्वत: और (२) परतः ये दो भेद स्थापित करने चाहिए। फिर उन ७ x २= १४ ही पदों के नीचे (१) काल, (२) यदृच्छा, (३) नियति, (४) स्वभाव, (५) ईश्वर और (६) आत्मा इन ६ पादों को रखना चाहिए। जैसे - जीव स्वतः यदृच्छा से नहीं है, जीव परत: यदृच्छा से नहीं है. जीव स्वतः काल से नहीं है, जीव परत: काल से नहीं है, इसी तरह नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा के साथ भी प्रत्येक के दो-दो भेद होते हैं । यो जीवादि सातों पदार्थो के सात स्वतः परतः के प्रत्येक के दो और काल आदि के ६ भेद मिलाकर कुल ७४२=१४४६-८४ भेद हुए। (४) अज्ञानवाद
अचानवादियों के ६७ भेद इस प्रकार हैं—जीवादि । तत्वों को क्रमशः लिखकर उनके नीचे ये ७ भंग रखने चाहिए(१) सत्, (२) असत्, (३) सदसत्, (४) अवक्तव्य, (५) सदवक्तव्य, (६) असदवक्तव्य, और (७) सद्-असद् अवक्तव्य 1 जैसे-जीव सत् है, यह कौन जानता है ? और यह जानने से भो क्या प्रयोजन है ? इसी प्रकार क्रमशः असत् आदि शेष छहों भंग समम लेने चाहिए । जीबादि । तत्वों में प्रत्येक के साथ सात भंग होने से कुल ६३ भंग हुए। फिर ४ भंग ये और मिलाने से ६३+४%3D६७ भेद द्वाए। चार भंग ये हैं (१) सत् (विद्यमान) पदार्थ की उत्पत्ति होती है, यह कौन जानता है, और यह जानने से भी क्या लाभ? इसी प्रकार असत् (अविद्यमान), सदसत् (कुछ विद्यमान और कुछ अविद्यमान), और अवक्तव्यभाव के साथ भी इसी तरह का वाप जोड़ने से ४ विकल्प होते हैं । (५) विनयवाद
नियूंक्तिकार ने विनयवाद के २२ भेद बताये हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) देवता, (२) सजा, (३) पति, (४) जाति, (५) वृद्ध, (६) अधम, (७) माता और (6) पिता। इन याठों का मन से, वचन से, काया से और दान से विनय करना चाहिए। इस प्रकार ८४४=३२ भेद विनयवाद के हुए।' इस प्रकार अन्यतीथिक मान्य क्रियावाद के १८० भेद
अक्रियावाद के ८४ भेद अज्ञानवाद के ६७ विनयवाद के ३२ भेद
सर्वभेद ३६३
१ सूत्रकृतांग नियुक्ति गा. ११६ । २ सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति पत्रांक २०५। । सूत्रकृताग शीलांक वृत्ति पत्रांक २.८ ।