SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चर्चासागर [ ६१ ] समाधान --- प्रथमवासी व्यंतर और ज्योतिष्क इन तीनों प्रकार के बेयोंमें जो जीव उत्पन्न होते हैं। सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति के बिना थोड़ासा व्रत तप करनेके पुण्यसे उत्पन्न होते हैं। इनमेंसे भवनवासी देवोंके तो सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति होनेसे आधेसागरकी आयु बढ़ जाती है तथा मिध्यात्वके उदय होनेसे आधेसागर आयु घट जाती है । इसी प्रकार ज्योतिषी और व्यंतर वैद्योंके सम्यग्दर्शनके उत्पन्न होनेसे आधे पल्यको आयु बढ़ जाती है और मिथ्यात्वका उदय होनेसे आधे पल्यकी आयु घट जाती है । तथा सब जगह सब देवोंके मिथ्यात्वरूपी विष वमन करनेसे तथा सम्यग्दर्शनरूपी अमृतके पीनेके अतिशयसे आयु बढ़ती है सो ही सिद्धांतसार atest पन्द्रहवीं संधिमें लिखा है । ज्योतिर्भवनभौमेषु सम्यक्त्वप्राप्तितौगिनाम् । किंचिद्वततपःपुण्यादुत्पद्यते भवाध्वगाः ॥३४॥ सम्यक्त्व प्रातिधर्माणां स्वायुर्भवनवासिनाम् । सागरार्द्ध च वर्खेत मिध्यात्वशत्रुघातनात्॥ ३५॥ ज्योतिष्कव्यंतराणां चायुः पत्यार्द्ध प्रवर्द्धते । मिथ्यात्वारिविनाशेन सम्यक्त्वमणिलाभतः ॥ ३६ ॥ सर्वत्र विश्वदेवानां मिथ्यात्वदुर्विषोज्झनात् । सम्यक्त्वामृतपानेन स्वायुः संवर्द्धतेतराम् ॥३७॥ त्रिलोकसारमें भी लिखा है । उवहिदलं पलद्ध भवणे विंतरदुगे कमेणहियं । सम्मे मिच्छे घादे पल्ला संखं तु सव्वत्थं ॥५४१ ॥ इस प्रकार चतुणिकायके देवोंकी आयुको वृद्धि हानिका स्वरूप सम्यग्दर्शन तथा मिथ्यात्व के माहात्म्यसे समझ लेना चाहिये, अर्थात् सम्यग्दर्शनके माहात्म्यसे आयु बढ़ जाती है और मिथ्यात्वके प्रभावसे घट जाती है। ६४ - चर्चा चौसठवीं प्रश्न - - चतुणिकाय देवोंको आयु जब छह महीनेकी बाकी रह जाती है तब उनका तेज घट जाता १. देवोंकी आयु बढ़नेका अभिप्राय यह है कि दूसरे सागरमें उत्कृष्ट आयु दो सागरसे कुछ अधिक है। इसका अभिप्राय यह है कि साधारण जीवोंकी उत्कृष्ट आयु दो सागर है परन्तु जिस घातायुष्क जीवका मिथ्यात्व छूट जाता है उसकी उत्कृष्ट वायु दो सागर के बजाय ढाई सागरकी हो जाती है क्योंकि दूसरे स्वर्ग में कुछ अधिकका अभिप्राय आधा सागर है। जिसने पहले भवमें अधिक आयुका बंध किया हो और फिर कारणवश आयु घट गई हो उसको घातायुष्क कहते हैं ।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy