________________
-
-
-
--
-
-
६१-वर्या इकसठवीं प्रश्न-इस ढाई नोपमें तीर्थंकरोंको अधिक से अधिक संख्या एक सौ सत्तर होती है । तथा जघन्य बीस बामागर होती है ऐमानते हैं परन्तु समतियोंको उत्कृष्ट जघन्य संख्या कितनी है ?
समाधान--धक्रवतियोंके होनेका सब जगहका कोई खास नियम नहीं है । सो ही सिद्धांतसारमै लिखा है। जेधन्येन जिनाधीशा भवंति विंशतिप्रमाः। चक्राधिपाश्च सर्वत्र नृदेवखचरार्चिताः ॥ ६१ ॥
६२-चर्चा बासठवीं प्रश्न-स्वर्गलोकमें सम्यग्दृष्टी जीव तथा मिथ्यादृष्टी जीव उत्पन्न होते हैं सो वहाँपर दोनोंकी आयु समान है अथवा होनाधिक है ?
समाधान-जिस जीवके स्वर्गमें ही मिथ्यात्वरूपी शत्रुके नाश होनेसे सम्यग्दर्शनको उत्पत्ति होती है । उसको सम्यादृष्टी देव कहते हैं। उसके आयु कर्मको जितनी स्थिति है उसमें सम्यग्दर्शनके प्रभावसे घातायुष्क
की अपेक्षा आधासागर आयुकी स्थिति बढ़ जाती है। यह वृद्धि भी सहस्रार स्वर्गतक ( बारहवें स्वर्गतक) होती है। इसी प्रकार जिस जीवके सम्यग्दर्शनका घात हो जाय और मिथ्यात्वका उदय हो जाय तो उस देवको अत्यु फर्मको स्थितिमेसे आधे सागरको आयु घट जाती है। यही बात सिद्धांतसारमें पन्द्रह्मो सन्धि । लिखी है।
सम्यक्त्वस्य देवस्य सागरार्द्ध हि वर्द्धते । आयुः यावत्सहस्त्रारं मिथ्यावारिविघातनात् ॥ ३२॥
प्रचार-IAGEचाहिन्यारा
१. तीर्थकरोंकी जघन्य संख्या २० है इनके सिवाय देव मनुष्य विद्याधरोंसे पूज्य चक्रवर्ती भी होते हैं। भावार्थ-विदेह क्षेत्रमें
चक्रवतियों की संख्याका कोई नियम नहीं है वे प्रायः सर्वत्र होते ही रहते हैं। २. मिथ्यात्वके नाश होनेसे सम्यक्त्वी देवको आय सहस्रार स्वर्ग तक आधासागर बढ़ जाती है। इसी प्रकार सम्यग्दर्शनके नाश
होनेसे मिथ्यास्वो देवको आयु आधासागर घट जाती है।