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________________ सागर २५५ ] SpiAAS यदि हटकर इसी गाथाको प्रमाण मानोगे तो देखो तुम्हारे महान् सीत नामके सूत्र में लिखा हैदेवधरमगुरुकज्जे चूरीज्जइ चक्कवट्टि सेपि । जोण विचुरई साहू लहु अनंत संसारिओ होई ॥ संघस्स कारणेणं चुरिज्जइ चक्कवट्ट सेर्णपि । जउ णउ चीज्जइ सौ अनंत संसारिओ होई ॥ अर्थ - यदि देव, धर्म, गुरुका काम आ पड़े तो उसके लिए चक्रवर्तीको सेनाको भो चूर्ण कर देना चाहिये अर्थात् मार देना चाहिये। जो साधु उसमें हिंसा समझकर नहीं मारता वह अनंतसंसारी होता है ॥ १ ॥ इसी प्रकार किसी चतुर्विधसंघके कामके लिए भी काम पड़ने पर चक्रवर्तीको सेनाको मार देना चाहिये। जो आधु उसमें पाप समझकर नहीं भरता है वह अनंतसंसारी होता है । ऐसो भगवानकी आज्ञा है । ऐसा तुम्हारे यहाँ लिखा है । सो यहाँ बताना चाहिये कि अहिंसारूप धर्मके लिये हिंसाका त्याग कहां रहा । तुम तो अपने सूत्रोंको भगवानके कहे हुए मानते हो सो झूठे हो नहीं सकते। परन्तु यहाँ आकर सब झूठे हो जाते हैं । और देखो -- गोशाल्याने भगवान महावीर स्वामी के ऊपर समवशरणमें तेजोलेश्या छोड़ी थी तथा उस समवशरणमें ही उसने भगवान के लिए माली आदि अनेक दुर्वचन कहे थे उसको सुनकर वो साधुओंको बड़ा क्रोध हुआ था और उस गोशाल्याको मारनेके लिए भी उठे थे ऐसा तुम्हारे यहाँ लिखा है तथा यह भो लिखा है कि उन साधुओंने धर्मके लिए हो क्रोध किया था और धर्मके लिए ही उसे मारनेको उठे थे । सो फिर यह कौन-सी अहिंसा रहो । धर्मके लिए यह हिंसा कैसी ? कहाँ तो पूजा में हिंसा मानना और कहाँ मारनेसे भी हिंसा न मानना इस पक्षपातका इस झूठका कुछ ठिकाना नहीं । इसके एक बात यह भी हैं "कि जिनप्रतिमाकी पूजा नहीं करना चाहिये जो कोई जिनप्रतिमा की पूजा करता है वह मिथ्यादृष्टि है। जिनप्रतिमाकी पूजा करनेवाला अमुक मनुष्य अनन्तसंसारी हुआ और नरकाविक दुर्गतियोंमें गया" इत्यादि वचन तुम्हारे किस सूत्रमें लिखे हैं । यदि कहीं लिखे हैं तो बतलाओ । कदाचित् कोई कामतका यह कहे कि हमारे किसी शास्त्र में प्रतिमा पूजनका विधान भो सो नहीं है। इसलिए हम लोग नहीं मानते हैं। तो इसका उत्तर यह है कि श्वेताम्बर सूत्रोंमें लिखा हैजो जड़ सीसंघ चिणंदरायं तहा विगयदोसं । सो तईय भवे सिज्झइ अहवा सन्तठभवे गाणी | [ ५५५
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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