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वर्धासागर - ५३१ ]
अस्त्यात्मास्तमितादिबंधन गतस्तद्बंधनान्यास्त्रवे
स्तेकोधादिकृताः प्रमादजनिताः क्रोधादयस्तेऽत्रतात् । मिथ्यात्वोपचितात् स एव समलः कालादिलब्धौ क्वचित्, सम्यक्त्वतदक्षता कलुषता योगेः क्रमान्मुच्यते ॥ २४१ ॥
२४५ - चर्चा दोसौ पैंतालीसवीं
प्रश्न --- मोक्षशास्त्र में लिखा है- 'तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' तत्वोंके द्वारा निश्चय किये हुए पदार्थोंका श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है । फिर लिखा है- 'तन्निसर्गादिधिगमाद्वा" वह सम्यग्दर्शन निसर्ग और अधिगमसे उत्पन्न होता है । इस प्रकार मोक्षशास्त्र में लिखा है । सो क्या सम्यग्दर्शनको उत्पत्तिके कारण ये दो हो हैं या इसके उत्पन्न होनेके और भी कोई कारण है ।
समाधान — सम्यग्दर्शन के उत्पन्न होनेके लिये ऊपर लिखे दो कारण तो हैं ही परन्तु इनके सिवाय शास्त्रों में सम्यग्दर्शनके उत्पन्न होने के लिए दस कारण और बतलाये हैं। आगे उन्होंको बतलाते हैं । आज्ञा १, मार्ग २, उपदेश ३, सूत्र ४, बीज ५, संक्षेप ६, विस्तार ७, अर्थ ८, गाढ़ ९, परमावगाढ़ १० | इस प्रकार अलग-अलग कारणोंसे उत्पन्न होनेसे सम्यग्दर्शनके दस भेद हो जाते हैं। जो शास्त्रोंके बिना पढ़े ही वीतरागको वाणी सुनकर श्रद्धान करना सो आज्ञा सम्यग्दर्शन है ॥ १ ॥ ग्रन्थोंको विस्तारपूर्वक सुने बिना ही चौबीस प्रकारके परिग्रहको स्याग कर मोक्षमार्गका निर्ग्रन्थ पद धारण करता मार्ग सम्यग्दर्शन है ॥ २ ॥ त्रेसठ शलाका के पुरुषोंके चरित्रोंको सुनकर सम्यग्दर्शन धारण करना उपदेश सम्यग्दर्शन है ॥ ३ ॥ मुनियोंके आचरणोंको प्रतिपादन करनेवाले चरणानुयोगको सुनकर सम्यग्दर्शन धारण करना सूत्र सम्यग्दर्शन
॥ ४ ॥ करणानुयोगके द्वारा गणितके ज्ञानके कारण बीजोंसे पदार्थोंका श्रद्धान होना सो बोज सम्यग्दर्शन है ॥ ५ ॥ पदार्थोंका स्वरूप संक्षेपसे जानकर श्रद्धान करना सो संक्षेप सम्यग्दर्शन है ।। ६ ।। द्वादशांगको सुनकर रुचि वा श्रद्धान करना सो विस्तार सम्यग्दर्शन है ।। ७ ।। जो जिनागमके वचनके बिना ही किसी अर्थके निमित्तसे सम्यग्दर्शन उत्पन्न होना सो अर्थ सम्यग्दर्शन है ॥ ८ ॥ अंग वा अंगबाह्य सहित जिनागमको जानकर
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