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________________ समाधान--इस चौथे कालमें इंगवसर्पिणी कालके बोबसे श्रीपुष्पदन्त तीर्थकरके समयसे लेकर श्री । शांतिनाथ तीर्थङ्करके समय तक का मारता हुआ और घटना हुआ विमछेव रहा था। सो हो त्रिलोकसारमें! वर्षासागर [१२] पल्लतुरियादि चय पल्लंतच उत्थूण पादपरकालं। ण हि सद्धम्मो सुविधीद् सतिअन्ते सगंतरए ॥ ८१४॥ अर्थ-श्रीपुष्पदन्त और शोतलनायके बीचमें पाव पल्यका विच्छेव रहा । शीतलनाथ और श्रेयांसनाथके बीच आधा पल्यका विच्छेद रहा। श्रेयांसनाथ और वासुपूज्य के मध्य में पौन पल्य तक धर्मका विच्छेव रहा। श्रीवासुपूज्य और विमलनाथके मध्यमें एक पल्यका विच्छेद रहा । श्रीविमलनाथ और अनन्तमाथके मध्यमें पौनी पल्य तक धर्मका बिच्छेद रहा। अनन्तनाथ और धर्मनाथके मध्य में आधे पल्य तक धर्मका विच्छेद रहा । तथा धर्मनाथ और शान्सिनायके मध्य में पाव पल्य तक धर्मका विच्छेद रहा। इस प्रकार विच्छेदका काल पावपल्यसे लेकर एक पल्य तक बढ़ता गया और फिर घटता हुआ पावपल्य तक रहा उसका यन्त्र इस प्रकार हैजिन तीर्थहरोंके समयमै धर्मका बिच्छेद रहा जितने समय तक विच्छेद रहा पुष्पवम्त पावपल्य शीतलनाथ आपापल्य श्रेयांसनाथ पौनपल्य वासुपूज्य एकपल्य विमलनाथ पौनपल्य अनंतनाथ आधा पल्य धर्मनाथ पावपल्य २३६-चर्चा दोसौ उन्तालीसवीं प्रश्न-तीर्थकर भगवान गृहस्थाश्रममें जन्मदिनसे लेकर वीक्षा समय तक जो वस्त्राभरण पहनते हैं सो देवोपनीत (वेवोंके यहाँसे आये हुए ) पहनते हैं । सोधे वस्त्राभरण कहाँसे आते हैं और उन्हें कौन लाता है।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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