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हाईवन संहिता शिक्षा - कर्षाभ्यामर्द्धपलं ज्ञेयं सुक्ति.रष्टमिका तथा । सूक्तिभ्यां च पलं ज्ञेयं मुष्टिरानं चतुर्थिका ॥g
दशमासेका एक कर्ष होता है। लिखा भी है "कर्षस्तु दशमासकः" दो कर्षका एक पैसा होता है। दो पैसे का एक टका होता है। यहाँ टका कहनेसे टकाभर तौल समझना चाहिये इस प्रकार चालीस मासेका # एक टका भर तौल समझना चाहिये। भागे उसी शायरमें लिखा है
पलानां द्विसहस्रं तु भारः एकः प्रकीर्तितः ॥ ___ अति दो हजार पलोंका एक भार होता है। इस प्रकारके एक हजार भार मिट्टोसे तथा गंगा आदि । तीयोंके सैकड़ों घड़े जलसे भी मांसाहारी कभी शुद्ध नहीं हो सकता । यही बात पहले पर्वमें लिखी हैचितं रागादिसंक्लिष्टमलीकवचनैमुखम् । जीवहिंसाभिः कायोयं गंगा तस्य परान्मुखी ॥
अर्थ-जिसका चित्त राग, द्वेष, मोह, मद, काम आदिसे मलोन है, मुख मिथ्या वचनोंसे मूठ बोलनेसे । । मलीन है और जीवोंकी हिंसा करनेसे जिसका शरीर मलीन है उसके लिये गंगा भी प्रतिकूल हो जाता है। से गंगा ऐसे पुरुषके सन्मुख कभी नहीं हो सकती। ऐसे पापियों को नहीं मिल सकती भर्यात ऐसे पापियोंके पाप। तीयों में भी नहीं कट सकते। ...
कोई-कोई लोम तीयोंमें स्नान करने मात्रसे हो समस्त पापोंका छूट जामा मानते हैं तथा शुभ गतियों का होना मानते हैं सो भी ठोक नहीं है । क्योंकि यदि तीयोंमें स्नान करने मात्रसे जीव तिर जाय, पापोंसे छूट जाय तो फिर गंगा आदि तीर्थोके जलमें रहनेवाले मछलो, मेंडक, मगरमरछ, कछया आदि जलधर जीव सब ही मुक्त हो जाना चाहिये । सबहीके पाप छूट जाना चाहिये । परंतु ऐसा होता नहीं है । लिखा भी है| ययंबुस्नानतो देही कृतपापाद्विमुच्यते । मुक्ति यांति सदा सर्वे जीवास्तोयसमुद्भवाः ।।
वेदव्यासने अठारह पुराण बनाये हैं। परन्तु उन सबका सार केवल दो बचनोंमें लिखा है। जीवोंको अभयवान वेनेसे तथा अन्य प्रकारसे पर जोवोंका उपकार करनेसे पुण्य होता है तथा अन्य जीवोंको पीड़ा देनेसे । पाप होता है। बस सब पुराणोंमें ये हो वो बचन सार हैं और बाकी सब निःसार हैं । सो हो लिखा है
अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयम् । परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् । ।