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________________ चर्चा सागर [ ४१९ ] माननेवाले गायको अच्छी मानते हैं और मुसलमान सूअर को अच्छा मानते हैं बस इतना ही दोनों में अन्तर विलाई पड़ता है। हिंसा करता दोनोंका बराबर है। दोनों ही समान हिंसक हैं। यहाँपर कदाचित् कोई यह कहे कि पहले लोग ऐसे समर्थ होते थे कि वे जीवों को होम भी देते थे और फिर उनको मंत्र पढ़कर जीवित भी कर देते थे । सो उनका यह कहना भी मिथ्या है। क्योंकि यदि वे इतने समर्थ थे तो फिर उन्होंने अपने कुटुबको मरनेसे क्यों नहीं बचाया । अपने सब कुटुंबको अमर क्यों नहीं बना दिया । परंतु आज तक किसीने अपने कुटुंबको अमर नहीं बनाया इससे सिद्ध होता है कि उनका इस प्रकार कहना त मिथ्या है।जोहोकले हैं वे सब सीधे स्वर्ग चले जाते हैं यदि यह बात सच है तो फिर उन लोगोंने अपने कुटुंबको ही क्यों नहीं होम दिया, जिससे उनका सब फुटुंब स्वर्ग चला जाता ? परंतु अपने कुटुंबको कोई नहीं होमता । इससे मालूम होता है कि होम करना सब स्वार्थ और जिह्वा लंपटता लिये है । इसके सिवाय एक बात विचार करनेकी यह है कि यदि मांसभक्षण योग्य होता तो भारत आदि तुम्हारे हो शास्त्रों में मांसको अत्यंत निद्य और स्याग करने योग्य क्यों बतलाया जाता ? जैसा कि पहले भारतका प्रमाण देकर लिख चुके हैं तथा यहाँ फिर भी प्रसंग आ गया है इसलिये प्रसंगानुसार कुछ और भी लिखते हैं। आपके धर्मशास्त्र में लिखा है , मांसाशिनो न पात्राः स्युर्न मांसदानमुत्तमम् । तस्पित्राणां कथं तृप्त्यै भुक्तं मांसाशिभिर्भवेत् ॥ पुत्रेणार्पितदानेन पितरः स्वर्गमाप्नुयुः । तर्हि तत्कृतपापेन तेपि गच्छति दुर्गतिम् ॥ २ ॥ किं जाप्यहोम नियमैस्तीर्थस्नानेन भारत ।। यदि मांसानि खादन्ति सर्वमेव निरर्थकम् ॥३॥ अर्थ — जो मांस भक्षी हैं वे कभी पात्र नहीं हो सकते। कितने ही लोग कहते हैं हम ब्राह्मण इसलिये दानके पात्र हैं परंतु उनका यह कहना मिष्या है। जो ब्राह्मण होकर मांस भक्षण करता है वह न तो ब्राह्मण है और न कभी पात्र हो सकता है । इसी प्रकार मसिका दान भी बान नहीं कहा जा सकता । ऐसी हालत में उन पितरोंको सुप्ति कैसे हो सकती है। कदाचित् ब्राह्मणोंको मांस खिलानेसे पितर लोग तृप्त हो जांय तो फिर यह भी मानना पड़ेगा कि वे पितर लोग भी मांसभक्षी हैं। यदि अपने पुत्रके द्वारा दान देनेसे यदि [ ४१
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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