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सागर
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यद्वत्काष्ठमयो हस्ती यद्वच्चर्ममयो मृगः । ब्राह्मणस्तु क्रियाहीनस्त्रयस्ते नामधारकाः ॥
अर्थात् काठका बना हुआ हाथी, चमड़ेका बना हुआ हिरण और क्रियाहीन ब्राह्मण ये तीनों हो केवल नामको धारण करनेवाले हैं। काठका बना हाथी केवल नामका हाथो है, चमड़ेका बना हिरण केवल नामका हिरण है उसी प्रकार क्रियारहित ब्राह्मण अथवा केवल जातिमात्रका ब्राह्मण नाममात्रका ही ब्राह्मण समझना चाहिये । वह गुणसे ब्राह्मण नहीं कहा जा सकता 1
इस प्रकार पंच णमोकार मंत्रके पाँचों पद सिद्ध हुए। सबको इकट्ठा लिखने से "नमः अरिहंतान्, नमः सिद्धान् नमः आचार्यान् नमः उपाध्यायान्, नमो लोके सर्व साधून् । इस प्रकार सिद्ध होते हैं। अब इनकी द्वितीयाके बहुवचन और प्राकृत भाषा के शब्दोंको मिलाकर यंत्र रचनाके द्वारा दिखलाते हैं। यदि इन्हीं शब्दोंकी ष्ठीका बहुवचन बनाया जाय तो इन शब्दोंसे आम् विभक्ति लगाकर नु का आगम करते हैं न् आम् नाम् हो जाता है, नाम परे रहते अकारको दोघं हो जाता है न सब क्रियाओंको कर लेने पर अरहंताणं, सिद्धानां आचार्यानां, उपाध्यायानां तथा भानु शब्द के समान सर्वसाधूनां सिद्ध होते । नमः शब्दके लगानेसे इन सबको नमस्कार हो, ऐसा अर्थ होता है ।
प्राकृत भाषाके अनुसार इन सब विभक्ति सहित शब्दोंकी यंत्र रचना इस प्रकार है । षष्ठीका बहुवचन नमो अरिहंतानां
संस्कृत द्वितीयाका बहुवचन
नमो अरिहंतान्
नमो सिद्धान् नमो आचार्यान्
नमो उपाध्यायान् नमो लोके सर्वसाधून
नमो सिद्धान
नमो आचार्याणाम्
नमो उपाध्यायानाम् नमो लोके सर्वसाधूनाम्
प्राकृत भाषाका पाठ
णमो अरिहंताणं
अथवा
णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं
णमो आइरिणं
णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं
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