SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 388
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सागर - ३६६ ] स्त्रियोंको ऋला तीन दिन तक ब्रह्मचर्यपूर्वक दाभके आसनपर सोना चाहिये, अपने पतिको भी न देखना चाहिये । हायपर रखकर अथवा मिट्टोके सकोरामें वा पत्तों की पत्तलोंमें रखकर रूखा अन्न भोजन करना चाहिये । आँसू डालना, नाखून काटना, उबटन लगाना, तेल लगाना, नस्य लगाना, आँखों में अंजन लगाना, पानी में डूबकर स्नान करना, बिनमें सोना, दौड़ना, बहुत ऊँचे स्वरसे, किसीको आवाज देते हुए बोलना, ऐसे ही ऊँचे शब्द सुनना, हँसना, अधिक बकबाद करना, कूटना, पीसना, अधिक बोझा उठाना, पृथ्वी खोदना, फैल फूटकर ( बहुत-सी जगह घेर कर ) बैठना वा सोना तथा और भी ऐसे ही ऐसे अयोग्य कार्य तीन तक नहीं करना चाहिये । यदि कोई स्त्री अपनी अजानकारीसे वा प्रमादसे था उसमें लोलुपताके कारण अथवा वैधयोगसे ऊपर लिखे कार्योंको करती है तो उसके अनेक प्रकारके दोष उत्पन्न हो जाते हैं। यदि कोई स्त्री इन ऋतुके तीन दिनों में रोती है तो उसके गर्भके बालकके ( जो बालक आगे गर्भमें आयेगा ) उसके नेत्र विकृत हो जाते हैं । अन्धा हो जाता है, धुंधला हो जाता है, माँखमें फूला हो जाता है वा काना, ऐंचा ताना हो जाता है । अथवा यह ढेर हो जाता है । उसकी आँखोंसे पानी बहता रहता है। उसकी आँखें लाल हो जाती हैं वा बिल्लोकीसी ( माँजरी ) आँखें हो जाती है। इस प्रकार उस बालकके नेत्रों में अनेक प्रकारके विकार उत्पन्न हो जाते हैं । यदि कोई स्त्री तीन दिनोंमें नाखून काटती है तो उसके बालकके नाखूनों में विकार हो जाता है । उस बालक के नाखून फटे-टूटे सुखे, कालें हरे, टेड़े, और देखनेमें बुरे हो जाते हैं। यदि वह स्त्री इन तीन दिनोंमें उबटन करती वा तेल लगाती है उसके बालकके अठारह प्रकारके फोड़ रोगोंमेंसे कोईसा भो कोढ़ रोग हो जाता है । यदि वह इन तीन दिनोंमें गंध लगाये वा जलमें डूबकर स्नान करे तो वह बालक दुराचारी व्यसनी होता है। यदि वह आँखोंमें अंजन लगावे तो उसके बालकके नेत्र नाद सहित हो जाते हैं। दिनमें सोनेसे वह बालक रातदिन सोनेवाला होता है । अथवा सदा ऊँघनेवाला बालक होता है । जो स्त्री इन तीन दिनोंमें दौड़ती है उसका बालक चंचल होता है, उत्पातो, उपद्रवी होता है। ऊँचे स्वर से बोलने वा सुननेसे उसका बालक बहिरा होता है। जो स्त्री इन तीन दिनोंमें हँसती है उसके बालकके तालु, जीभ, ओठ काले पड़ जाते हैं। इन तीन दिनोंमें अधिक बोलनेसे उस स्त्रीके प्रलापी बालक होता है। जो झूठा हो, लवार हो उसको प्रलापी कहते हैं । ३६६
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy