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तन्मध्ये मेस्वभाति विकटाख्यो महागिरिः।
अत्यंतदुःप्रवेशोऽयं शरण्यः सद्गुहारहैः ॥५१॥ पासागर शिखरं तस्य शैलेंद्रचूडाकारं मनोहरम् । योजनानि नवोत्तुगं पंचाशद्विपलत्वतः ॥५२॥
। नानारत्नप्रभाजालछन्नहेममहातटम् । चित्रवल्लीपरिष्वक्तकल्पद्रुमसमाकुलम् ॥५३॥
सिंशोजनमानाभः सर्वतस्तस्य राक्षसी । लंकेति नगरी भाति रत्नजांबुनदालया ॥५॥ ई मनोहारिभिरुयानःसरोभिश्च सवारिजः । महभिश्चैत्यगेहैश्च सा महेंद्रपुरीसमा ॥५५॥
यही बात श्री सोमसेनविरचित द्वितीय पापुराणमें तीसरे अधिकार में लिखी है। । तंत्र भीमसुभोभाख्यो स्थितो तो राक्षसाधिपो संतुष्टो मेघवाहाख्यं वदतीधर्मवत्सलो।६।। द्वोपोस्ति लवणाम्भोधौराक्षस नामतो वरं। योजनानां शतसप्त विस्तीर्णःस मनोहरः ॥७॥
तन्मध्ये त्रिकूटाभिख्यः पर्वतोस्ति निधानभत् । योजनानां नवोत्तुगः पंचाशद्विस्तमो मतः॥ ७१ ॥ तत्र लंकापुरी भाति त्रिंशद्योजनविस्तरात् ।
स्वां दास्यामः पुरी तां वं स्थित्वा तत्र सुखी भव ॥ ७२ ॥ इस प्रकार कथन किया है। इससे लंका लवणोदधि हो जाननी चाहिये । उपसमुद्र में नहीं है।
११-चर्चा ग्यारहवीं प्रश्न-जो गृहस्थ न तो अरहन्त देवकी पूजा करता है और न पात्रदान देता है वह किस योग्य है ?
समाधान-जो गृहस्थ न तो भगवान् अरहन्तदेवके घरणकमलोंकी पूजा करता है और न मुनिराजोंके लिये भक्तिपूर्वक दान देता है उस गृहस्थपदके लिये किसी गहरे जलमें प्रवेश कर बहुत शीघ्र जलांजलि । * इन श्लोकोका अभिप्राय यह है कि लवणसमुद्र में राक्षस द्वीप है उसमें चित्रकुटाचल पर्वत है उनपर मनोहर लंका बसी है। १. इन श्लोकों का अर्थ वही है जो पर लिखा है।
AADHAARNचामान्यतया