SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चर्चासागर [ ३२२ ] Sems इस प्रकार प्रत्येक पाँच-पाँच दिन अपूज्य रहनेपर उन पापोंकी शांति के लिये अधिक अधिक कलशोंसे अभिषेक करना चाहिये। ऊपर लिखो सब विधियोंमें अभिषेक पूर्वक आठों द्रव्योंसे पूजा करनी चाहिये । एक सौ आठ बार मूल मन्त्रोंसे जप करना चाहिये और आहुति देनी चाहिये । यदि सात, आठ, नौ, दश, ग्यारह, बारह महीने तक या इससे भी अधिक काल तक वा बहुत समय तक प्रतिमाजी अपूज्य रहें तो सर्वलोकशरण्य विधि करनी चाहिये और बलिविधान, प्रतिष्ठापनविधान, प्रोक्षणविधि और बिहार विधान आदि जिन संहितामें कहे अनुसार करना चाहिए। यहाँपर ग्रन्थ विस्तार होने के डर से नहीं लिखा है। इस प्रकार अनुक्रमसे पहले कहे हुए कथनको विचार कर समझ लेना चाहिए । यह सब कथन भगवदेकसंधिकृत जिनसंहिता नामके शास्त्र में आठवें अध्याय में लिखा है । यथा- एकसंध्याचंनाभावे जिनेन्द्रप्रतिमालये । संध्यायामपरस्यार्या पूजयेदधिकं विभुम् ॥२॥ जिनेन्द्राभ्यर्चने हीनसाधेन सति धीधनैः । जपो हृदयमंत्रः स्याद्वारानष्टोत्तरं शतम् ॥३॥ संध्यायाचनाशून्ये जिनदेवनिकेतने । घटेः षोडशसंख्यानैः स्नापयेद खिलेश्वरं ॥४॥ एकवासरमभ्यरहिते देवधामनि । कलशैः पंचविंशत्या स्नापयेत्परमेष्टिनम् ||५|| त्यक्तदेवार्चणा देवभवने पंचवासरान्। एकपंचाशतैः कुभैः स्नापयेत्रिजगद्गुरुन् ॥६॥ देवाचविकले देवमंदिरे दशवासरान् । घटे रेकोत्तराशीत्या स्नापयेच्चतुराननम् ॥७॥ अर्द्धमासं जिनेंद्राचसंत्यक्ते जिनवेश्मनि । अष्टोत्तरशतेनार्हत्स्वामिनं स्नापयेद घटेः ॥८॥ मासं जिनेश्वराभ्यर्चाविहीने जिनसद्मनि । देवमष्टशतेन इयर्हतेन स्नापयेद् घटैः ॥६॥ मासौ द्वौ चर्चनारिकते जाने जैनेश्वरालये । त्रिभिरष्टशतैः कुभै स्नापयेरित्रजगत्प्रभुम् ॥ १०॥ मासान् त्री वर्जिने चैत्यपूजया जिनधामनि । चतुःघ्नेन घटै रष्टशतेन स्नापयेज्जिनम् ॥११॥ जिनाभ्यर्चापरित्यक्ते तु मासं जिनालये । अर्द्धनाष्टसहस्त्रस्य स्नापयेद् जिनपं घटेः ॥ १२ ॥ जिनचैत्यालये पंचमासं मानविवज्जिते । अष्टोत्तरसहस्रेण स्नापयेत्कलशैः प्रभुम् ॥१३॥ देवष्णे विनिर्मुक्ते पण्मासं देवपूजया । कृत्वा संप्रोक्षणे देवे तदेव स्नापयेद् घटैः ॥ १४॥ [
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy