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हा प्रमाण है" तीसरी
देनेवाला है ।" लोगोंको इस बासको सुनकर राजा विचार करने लगा कि "वास्तवमें नारबका वधन सभा
है। मैंने पर्वतका झूठ पक्ष लेकर असत्य वचन कहा है इसीलिये यह खंभा पृथ्वीमें धंस गया है । परन्तु में चर्चासागर
गुरानीके वचनोंसे बँधा हुआ हूँ मैं जानता हूँ कि गुरुजीको ऐसी आजा नहीं है। उनकी आज्ञा नारदके वचनोंके [२७८ ] के अनुसार है । परन्तु जो होनहार होगा सो होगा अब अपने वचनोंका पक्ष तो छोड़ना उचित नहीं है।" इस
प्रकार सोच विचार कर वह राजा वसु फिर दुबारा कहने लगा कि "पर्वतके हो वचन प्रमाण है" राजाके इस प्रकार कहनेपर वह स्फटिकर्मागका बाकोका खंभा भी पृथ्वीमें धंस गया। तब मंत्री आदि सब बड़े-बड़े सभासद खड़े होकर राजासे प्रार्थना करने लगे कि "हे राजन् ! आपके असत्य वचनोंके पापसे ही यह स्फटिकमणिका खम्भा सब पृथ्वीमें फंस गया है और आपका सिंहासन पृथ्वीसे आ लगा है। अब आगे क्या हाल होगा। इसको सोचकर सच बात ही कह दीजिये" सब लोगोंको यह बात सुनकर भी उस पापी राजा वसुने अपने हटस अपने वचनोंका पक्ष नहीं छोड़ा और तीसरी बार भी उसने कहा कि “पर्वतके वचन हो प्रमाण बार राजाका इतना कहना था कि उसी समय राजा बसु सिंहासन सहित पृथ्वोमें धंस गया और मरकर । नरकमें पहुंचा। इससे सिद्ध होता है कि कोई भी माननेवाला पुरुष केवल हटसे अपने वचनोंका पक्ष लेता है तो उसको ऐसो हो निधगति प्राप्त होती है। उस समय नारदके ऊपर देवोंने पुष्पोंको वर्षा की थी और सब लोगोंने पर्वतको वहाँसे निकाल दिया था। ऐसे एक नहीं अनेक कथन है सो सब जैनशास्त्रोंसे जान लेना चाहिये।
ऐसा ही हट करनेवाला एक सस्यघोष नामका ब्राह्मण था उसने भी अपना हट नहीं छोड़ा था और E अन्ततक झूठ ही कहता रहा था इसलिए उसने भी तीन थाली गोबर खानेका, सब धन हरण करे जानेका, । और मल्लोंको तीन मुठ्ठियोंकी भारी मार सहनेका दण्ड भोगकर तथा प्राणांत होकर सर्पको गतिमें जन्म पाया था इसकी कथा आगे भी बहुत है।
इन सब कथाओंसे सिद्ध होता है कि हट करनेवाला अपने कल्याण वा अकल्याणको नहीं देखता, केवल अपने वचनोंको पक्ष पकड़ लेता है । उसको नहीं छोड़ता। परन्तु वचनोंका पक्ष करना वा हट करना । बहुत ही दुःखदायक है । जो मनुष्य भगवान अरहन्त देवकी आज्ञाको मानते हैं वे उनके वचनोंके पक्षको हो
अपने मस्तकपर धारण करते हैं।
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ETawaiswarमसामया