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________________ थारा देते हो उसमें बिना उपवेशके प्रासुक गर्म किया हुआ दूसरेके घरका जल काम नहीं लाते। घरसे निकल कर ईर्यासमितिसे जिनालय नहीं जाते। वर्शन, वंदना, पूजा आदि कार्योको प्रतिलेखन वा प्रतिक्रमणपूर्वक नहीं चर्चासागर करते, तीर्थयात्रा निकलवाते हो, जलयात्रामें जाते हो और साधन मिलाकर इन सब कार्योको देखते हो परंतु ॥ [ २६८ ] इन सब कार्यो से एक भी कार्य ऐसा नहीं है जो विना सावधयोगके होता हो। जो नवीन जिनमंदिर बनवाते हो । उसमें आरम्भाविक महा हिसा होता है, फिर उसमें जिनमूर्ति विराजमान करते हो, चारों ओर बहतसा सामान इकट्ठा करते हो, अनेक प्रकारके पकवान बनाते हो उसमें बहतसा जल फैलाया जाता है तथा और भी कई B प्रकारसे बहुतसे त्रस स्थावर जीवोंकी हिंसा होती है। जो प्रत्यक्ष सबको दिखलाई पड़तो है फिर इतना आरम्भ क्यों करते हो, अपनी शक्तिके अनुसार द्रव्य देकर सीधी तैयार बनो बनाई प्रासुक हवेली मोल लेकर उसमें भगवान । विराजमान क्यों नहीं कर देते ? अथवा अपनी बनी हुई सुन्दर हवेलीमें हो विराजमान क्यों नहीं कर देते ? अपने लिये और हवेली बनवा लेना चाहिये क्या इसमें पुण्य नहीं है ? शिल्पकारसे भूति मोल लेकर योंही बिना प्रतिष्ठाके विराजमान कर पूजा क्यों नहीं करते हो? विनय, भक्ति आदि सब तो अपने भावोंके आधीन हैं फिर प्रतिष्ठा आदिका व्यर्थ आरम्भ क्यों करते हो? प्रयोजन तो केवल धर्मसाधनसे है फिर व्यर्थ ही हिंसादिकका ! आरम्भ क्यों करना चाहिये ? परन्तु ऐसा तुम न करते हो और न करना चाहिये। तुम लोग अपने आरम्भाविक। के योषोंको तो ढकते जाते हो और दूसरेके दोषोंको प्रगट कर निन्दा करते हो सो यह सज्जनोंका धर्म नहीं है। प्रश्न--अभिषेकाविकका वर्णन शास्त्रों में कहां लिखा है ? नित्य अभिषेक पाठ, महा अभिषेकपाठ, शांत्यभिषेक पाठ, पहत् शात्यभिषेक पाठ, व्रतोद्यापन विषान व्रत धारण तथा वोंके धारण करनेको विधि, नित्य पूजा, नैमित्तिक पूजा, प्रायश्चित्त शास्त्र, अष्टान्हिका, षोडशकारण, दशलाक्षणिक, रत्नत्रय, अक्षयनिधि, मुकुटसप्तमी, आदित्यव्रत, ज्येष्ठ जिनबर, मेघमाला, आकाशपंचमी, निर्दोष सप्तमी, चंदनषष्ठी, पुष्पांजलि, अनंत व्रत आदि समस्त जिनभाषित व्रतोंके विधानमें, । कथा सहित व्रतकथा कोशोंमें, प्रतिष्ठा शास्त्रोंमें, बृहत् आदिपुराग, लघु आदिपुराण, उत्तरपुराण, पांडव पुराण, बृहत् हरिवंश, लघु हरिवंश, वृहत्पमपुराण, लघु पापुराण तथा गाथा वक्ष पमपुराण, षट्कर्मोपदेश । रत्नमाला, यशस्तिलक महाकाव्य, पूजासार संहिता, मिन संहिता,' श्रावकाचार आदि समस्त जैनशास्त्रों में २
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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