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न शक्तितस्त्यागाय नमः' सातमें 'ह्रो शक्तितस्तपसे ममः' आउमें 'ॐ ह्रौं साधुसमाश्रये नमः' नौमें 'ॐ
ह्रीं यावत्यकरणाय नमः' दशमें 'ॐ आईवभपतये नमः' ग्यारहर्वे में ॐ हीं आचार्यभक्तये नमः' बारहवें में चर्चासागर
A'ॐ ह्रीं बहुश्रुतभक्तये नमः' तेरहवेंमें हमें प्रवचनभक्तये नमः' चौबहमें 'ॐ ह्रीं आवश्यकापरिहाणये [२१९]
। नमः' पन्द्रह में 'ॐहीं मार्गप्रभावनायै नमः' सोलहवेमें 'ॐहों प्रवचनवत्सलरवाय नमः' लिखना चाहिये। फिर बाहर तोन वलय वेफर भूमंडल करि वेष्ठित करना चाहिये फिर चार क्षितिबीज, चार इन्द्रायुध सहित कुलिशाष्टक तथा चार द्वार करि सहित लिखना चाहिये।
तदनन्तर उसका आसान स्थापन, सन्निधिकरण कर पूजन करना चाहिये फिर विसर्जन करना चाहिये। तथा मूलमन्त्रसे एकसौ आठ बार जातिपुष्प ( चमेलो ) से अथवा लोंगसे उस यन्त्रके ऊपर जप करना A चाहिए। यह इसके आराधन करनेको विधि है।
इस यन्त्रके आराधन करनेसे भव्यजीवोंको तोर्यखूर प्रकृतिका बंध होता है। ऐसा इसका फल है। । इसलिये भव्यजीवोंको इसका स्नपन, पूजन, जप तथा व्रत, उपवास आदि सब मन, वचन, कायसे करना चाहिए । षोडशकारण यन्त्र १० २१९ ( 2 ) में देखो।
१६४-चर्चा एकलो चौसठवीं प्रश्न-दशलामणिक धर्मके यन्त्रको विधि तथा अर्चनाविकका ( पूजाका ) स्वरूप क्या है ?
समाधान-उत्तम क्षमा आदि बम प्रकारसे मुनियोंका धर्म सिद्ध होता है तथा कुछ-कुछ श्रावकका । धर्म भी सिद्ध होता है । इसलिए धर्मको प्राप्तिके लिए भव्यजीवोंको इस यन्त्रको पंचामृत स्नानपूर्वक जल, ॥ गंधारिक आठों अन्योंसे पूजा करनी चाहिए तथा इस यन्त्रके ऊपर सुगन्धित पुष्पोंसे तथा लवंगसे एकसौ आठ बार जप करना चाहिए। तथा व्रत, उपवास आदि विधिसे इसका आराधन करना चाहिए। आगे इसका। स्वरूप लिखते हैं।
पहला धर्म उत्तम क्षमा है । पृथ्वीकायिक आदि छहों कायिक जीवोंपर क्षमा धारण करना उत्तम क्षमा है। इसका अभिप्राय यह है कि यदि कोई वुष्ट वा बुर्जन जीव अनेक प्रकारके उपद्रव करें तो भी अपने को# का स्मरण कर उससे क्रोध न करना, क्षमाभाव धारण करना सो उत्तम भमा है ।
चार-पाचEDEnाचाचपन्नावरच्या