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________________ सागर । बायों ओर होते हुए अनुक्रमसे चौबीस देवताओंको प्रणव शक्तिबीज चतुर्थी विभक्तिसहित नमः शब्दके साथ। लिखना चाहिये । उन देवता धा देवियों के नाम ये हैं। पहले इलमें 'ॐ ह्रीं श्रियै नमः', दूसरे दलमें 'ॐ ह्रीं ह्रीदेव्यै नमः', तीसरेमें 'ॐ ह्रीं धृतये नमः', चौमें 'ॐ ह्रीं लक्ष्म्यै नमः' पांचवेंमें ली गौर्यै नमः', छठेमें। लो चण्डिकाय नमः', सातवें हों सरस्वत्यै नमः', आठवें में 'ॐ ह्रीं जयायै नमः', नौवमें 'ॐ ह्रीं। अम्बिकायै नमः', वशमें 'ॐ ह्रीं विजयायै नमः', ग्यारहवेमें 'ॐ ह्रीं क्लिन्नायै नमः', बारहवेंमें 'ॐ ह्रीं अजितायै नमः', तेरहवेमें 'ॐ ह्रीं नित्यायै नमः', चौदहमें 'ॐ ह्रीं मवद्रवायै नमः', पंद्रहवेमें 'ॐ ह्रीं कामांगाय नमः', सोलहवेंमें ' ह्रीं कामबाणायै नमः', सत्रहवेमें 'ॐ ह्रीं सानन्दायै नमः', अठारहवेमें 'ॐ ह्रीं नन्दिमालिन्य नमः', उन्नोसमें 'ॐ ह्रीं मायायै नमः', बोसवेमें "ॐ ह्रीं मायाविन्यै नमः', इकईसर्वे में ही रौद्रायै नमः', बाईसमें 'ॐ ह्रीं कलायै नमः', तेईसवेमे 'ह्री काल्यै नमः' चौबीसवें में 'ह्रीं कलिप्रियायै ।। नमः' । इस प्रकार पूर्व विशासे लेकर बायों ओरको गतिसे लिखकर पूर्ण करना चाहिये। फिर माया बीजका ॥ त्रिकोण अर्थात् तीन वलय देकर तथा भूमण्डलसे वेष्ठित कर इसका आराषन करना चाहिये। इसके आराथन करनेकी विधि यह है । सबसे पहले 'ॐ ह्रां ह्रीं हुं हुं हैं हैं ह्रीं ह्रौं ह्रः असि आउ सा सम्यग्दर्शनशानचारित्रेभ्यो ह्रीं नमः' इस मूल मन्त्रसे जल, चन्दन, अक्षत, पुष्प, मेवेद्य, वीप, धूप, फल ।। और अर्घसे पूजा करनी चाहिये। तया इसी यंत्रके ऊपर एकसौ आठ बार इसी मूलमन्त्र के द्वारा रक्त करवीर अर्थात् लाल कन्नर आदि सुगंधित पुष्पोंसे जप करना चाहिये। यदि इसकी सिद्धि करना हो तो इसको सिद्धिके लिये ब्रह्मचर्यत्रत धारण करना चाहिये, प्रतिदिन पूजा करनी चाहिये और आचाम्ल ( केवल मांड, भात ! खाना ) तप करना चाहिये। इतना सब करते हुए आठ हजार जप करना चाहिये तथा इस मंत्रके आगे I होमांत अर्थात् स्वाहा शब्द और लगाना चाहिये। इस प्रकार करनेसे इसको सिद्धि होती है जिससे समस्त । सिद्धियोंको प्राप्त होता है। जो पुरुष इस यंत्रको आठ महीने तक सिद्धि करते हैं, तोनों समय पूजा करते हैं, जप करते हैं, ब्रह्मचयंसहित आचाम्ल आदि तप करते हैं तथा सबके अन्त दशांश होम, तर्पण, मार्जन करते हैं वे निश्चयसे अपने । आत्मामें साक्षात् प्रगट हुए श्रीमरहन्तबिम्बको देखते हैं। तथा ये पुरुष सात आठ भवमें ही मोक्ष प्राप्त कर। लेते हैं फिर वे संसारमें परिभ्रमण नहीं करते। ऐसा इसका फल है।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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