________________
समाधान-अपने दोनों हाथ, दो पैर, एक मस्तक, एक छाती और दोनों कपाल इस प्रकार मागे ।
अंगोंको भूमिमें स्पर्शते हुए नमस्कार करना सो अष्टांग नमस्कार है। भावार्थ-पहले पृथ्वीपर वणके समान बासागर
नोचेको ओर मुंह कर सीधा सो जाना जिससे दोनों पैर, मस्तक, छाती, दोनों हाथ भूमिसे लग जांय फिर क्रम[१५]
से बाये बांये कपोलोंको लगाना भूमिसे स्पर्श करना । इस प्रकार नमस्कार करनेको अष्टांग नमस्कार कहते हैं। । सो ही लिखा हैहस्तौ पादौ शिरश्चोः कपोलयुगलं तथा। अष्टांगानि नमस्कारे प्रोक्तानि श्रीजिनागमे ॥
दोनों हाथ दोनों पैर और मस्तक इन पांचों अंगोंको भूमिमें स्पर्शते हुए नमस्कार करना पंचांग नमस्कार है । सो ही लिखा है।
मस्तकं जानुयुग्मं च पंचांगानि करौ नतो। पश्वशायि नमस्कारका स्वरूप इस प्रकार है। पशु पायको कहते हैं । गायके समान आषा सोना जिससे पोछेके आधे अंग तो खड़े रहें और आगेका आधा अंग अर्थात् दोनों पैर और मस्तक पृथ्वी पर नम जाय । पैरोंके दोनों घुटनोंसे नमकर गर्दनसे मस्तकको नीचा करना पश्वर्द्धशायि नमस्कार है। भावार्यखड़े पैरोंसे बैठकर दोनों हाथोंको कोनोसे नवाकर तथा पृथ्वीपर रखकर अपना मस्तक झुकाना सो पश्वर्द्धशायि नमस्कार है । सो ही लिखा है
अत्र प्रोक्तानि पश्वर्द्धशयनं पशुवन्मतम् । इस प्रकार नमस्कारके तीन भेद हैं सो जैसा अपनेसे बन सके वैसा भावपूर्वक देव, शास्त्र, गुरुको नमस्कार करना चाहिये।
इनमेंसे स्त्रियों के लिये अष्टांग और पंचांगका अधिकार नहीं है। उनको केवल पश्वर्द्धशायि नमस्कार करनेका अधिकार है। पुरुषोंको तीनों प्रकारके नमस्कार करनेका अधिकार है। यह बात मूलाचारमें आधिकाओंको वंदना करते समय समयाख्याधिकारमें लिखी हैपंच छह सत्त सूरी अज्झावगो य साधू य। परिहरिऊणज्जाओ गवासणेणेव वंदति ॥१९॥
इसका अर्थ एकसौ ग्यारहवीं च में लिखा है। जब आजिका भी गवासनसे ही आचार्याविकको वंदना.