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________________ पळ संख्या पृष्ठ संख्या | वो संख्या पृष्ठ संख्या २४६ धर्मध्यानके चार भेद हैं बाशाविचय, अपायविषय, विपाकः कर शुबोपयोगमय ग्रन्य मानने चाहिये, पुराणाविक गोष वित्रय और संस्थान विचय। इनके सिवाय धर्मध्यानके मानने चाहिये इसमें क्या हानि है। ५२८ ___और भेद कौन-कौन हैं वर्तमान समयके शास्त्रोंमें जो कथन है सो कहीं कहीं २७ पिंडस्थ, पदस्थ, रूपस्थ, रूपातीत ये चार मेद कौन-कौन संदेह सहित है इसलिये वे पूर्ण प्रमाण नहीं कहे जा से ध्यानके हैं। सकते। २४८ ऊपर जो धर्मध्यानोंके भेद लिखे हैं सो किसकिस गुण निश्चयधर्मको माने बिना सम्यग्दर्शनको प्राप्ति किस स्थान में होते हैं ५३४ प्रकार होगो। इस समय जो लाखों जैनी हैं सो क्या बिना सम्यग्दर्शनके २४९ जो शुद्ध आत्मध्यानके वा शुद्धोपयोगके कारण हैं ऐसे धर्म पालन करते हैं। अध्यात्मरूप जैन सिद्धान्तोंके पढ़ने दा मुननेका अधिकार | २५१ जिन प्रतिमाके जंगम और स्थावर ऐसे दो भेद सुने हैं गृहस्थको है या नहीं। सो इसका क्या अभिप्राय है। गहस्थोंको सिद्धांत प्रन्योंके अध्ययन करनेका निषेध है ऊपर जो कथन किया है सो मूल पाथाओंका नहीं है सुननेन्बाचनेका निषेध नहीं है। टोकाका है इसलिये प्रमाण नहीं है। इसलिये हम अरहंत, श्रावकोंको सिद्धांत ग्रन्थोंके पठन-पाठनका तथा वीरचा सिका ती मानते है परन्तु उनकी प्रतिमाओं को नहीं प्रतिमा योग आदिका निषेध किया तो फिर श्रावकोंको मानते । धातु पाषाणको प्रतिमा मोक्षका कारण नहीं हैं करना क्या चाहिये केवल असमझ लोगोंके लिये है। आत्मज्ञानियों के लिये इस समय जो सिद्धांत ग्रन्य उपलब्ध हैं उनका निषेध नहीं। सो हो योगसारमें लिखा है, चाणिस्यमें लिखा है नहीं है। गृहस्थोंके न बाचने योग्य ग्रन्थ तो और इसलिये प्रतिमा मानना, उसकी पूजा करना व्यर्थ है ही हैं जो इस समय उपलब्ध नहीं हैं। जो मुनियोंके हो प्रतिमाकी पूजा करने में अनेक प्रकारको हिसा होती है। पढ़ने योग्य हैं जैसे एक अक्षर संयोगी दो अक्षर संयोगी धर्म अहिंसारूप है इसलिये प्रतिमापूजन धर्म नहीं है पाप तीन वा चार अक्षर संयोगी इस प्रकार चौसठ अक्षरके है इसका समाधान सँयोगो अक्षरोंके पढ़नेका निषेध किया है इसका नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि पूजाकों के भेद ५५० समाधान ५३७ लुकामत वा ढिया कहते हैं कि हमारे सूत्र में प्रतिना २५० यदि गृहस्थ सिद्धांत ग्रन्थोंका अध्ययन न करे तो उसको तथा मंदिर पूजाका निषेध किया है प्रतिमा पूजनमें शुद्ध आत्मज्ञान किस प्रकार हो । आत्मज्ञान के बिना शुद्ध हिंसादिक महापाप होता है जो प्रतिमा पूजन करते हैं वे ध्यान नहीं हो सकता। शुत ध्यान ही मोक्षका कारण कोयलेके लिये चंदन जलाते हैं मूर्ख हैं इसलिये प्रतिमाहै इसलिये अध्यात्म शानियोको व्यवहार धर्म न मान की पूजन करना भारी भूल है इसका समाधान AAROHALIFATRIETRO-माचार
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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