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समाधान--स्त्रियोंको ध्यान और वंदना भयवानके बाई ओरसे करनी चाहिये। ऐसी शास्त्रकारोंकी
पर्चासागर [१६]
१४६-चर्चा एकसौ उनचासवीं प्रश्न-गृहस्थोंको जो पहिले पूजा करनेको विधि बतलाई है वह संक्षिप्त विधि है । अब इसको विशेष "विधि बतलानी चाहिये।
समाधान--पूजा करनेको विशेष विधि इस प्रकार है। शौचसे निवृत्त होने, वान करने और स्नान करने आदिको विधि पहले बता चुके हैं उसके अनुसार स्नान करके भगवानके चस्यालयमें जाना चाहिये। । उसको भी विधि इस प्रकार है। अपने घरसे आकर पैर धोवे फिर अपने मस्तकसे श्रीजिनेन्द्रमन्दिरके किवाड़
खोले। किवाड़ लोलते समय "ओं ह्रीं अहं कपाटमुद्घाटयामोति स्वाहा" इस मंत्रको पढ़े। फिर "ओं हों द्वारपालाननुज्ञापयामि स्वाना" यह मंत्र पढ़कर द्वारपालसे आज्ञा लेनी चाहिये। द्वारपालको आज्ञा लेकर धीजिनचेस्यालयमें प्रवेश करना चाहिये तदनंतर "ओं ह्रीं अहं निःसही निःसही रत्नत्रयपुरस्सराय विद्यामंडल निवेशनाय शमययाय निःसही जिनालयं प्रविशामि स्वाहा।"ऐसा उच्चारण कर जिनालय में प्रवेश करना चाहिये। फिर ईर्यापथ शुखि करना चाहिये । ईर्यापथशुद्धिका पाठ इस प्रकार है
निःसंगोऽहं जिनानां सदनमनुपमं त्रिःपरीत्येत्य भक्त्या,
स्थित्वा गत्वा निषद्योच्चरण परिणतोऽन्तःशनैर्हस्तयुग्मम् । भाले संस्थाप्य बुद्ध्या मम, दुरित हरं कीर्तये शक्रवंद्यं,
निन्दा दूरं सदाप्तं क्षयरहितममुं ज्ञानभानुं जिनेन्द्रम् ।।१।। १. ओं ह्रीं अहं यह बीजाक्षर है, मैं किवाड़ खोलता है। २. मैं द्वारपालकी आज्ञा लेता है। । ३. मैं मन, वचन, कायसे शुद्ध हो जिनमन्दिरमें जाकर तीन प्रदक्षिणा दे खड़े होकर थोड़ा आगे चलकर बैठकर धीरे-धीरे कुछ
स्तोत्रादिक पढ़ता हआ हाथ जोड़ मस्तकपर रख इन्द्रपूजित निर्दोष अक्षयज्ञानरूपो सूर्य और मेरे पापोंको दूर करनेवाले श्री जिनेन्द्रदेवकी स्तुति करता हूँ॥१॥ में ऐसे श्रीमन्दिरको शरण लेता है जो ऐश्वर्यमुक्त है, पवित्र है, कल रहित है, जिसमें सवा मंगल होते रहते हैं जो रत्नमय और तीनों लोकोंको सुशोभित करनेवाला है।॥२॥ अत्यन्त गम्भीर स्थाबाद ही जिसका
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