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________________ बर्चासागर [ १६३ ] इस प्रकार त्रिकाल पूजाकी रोति लिखी है। तथा अष्ट द्रव्यसे जो पूजाकी जाती है वह विशेष पूजा । इस अष्ट व्यकी पूजाको त्रिकालमें करनेका कुछ नियम नहीं है। है । समय की जाय उसी समय में हो सकती है । १४४ - चर्चा एकसौ चवालीसवीं प्रश्न- सायंकालको जो दोप, धूपसे पूजा की जातो है उसकी विधि क्या है ? समाधान - पूजा करनेवाले पुरुषको पूजा करते समय भगवानके बाँई ओर धूपदान रखकर उसमें क्खी हुई अग्नि मन्त्रपूर्वक धूप चढ़ाकर भगवानकी पूजा करनी चाहिये । तथा दीपक जलाकर भगवानके सामने मंत्रपूर्वक आरती उतार कर पीछे भगवानकी वाहिनी ओर उस दीपकको रख देना चाहिये। यह पूजाका सब जगहका नियम है सो ही उमास्वामी विरचित श्रावकाचार में लिखा है । वामांगे धूपदाहस्य दीपपूजा च सन्मुखी। अर्हतो दक्षिणे भागे दीपस्य च निवेशनम् ॥ पूजाकी ऐसी आम्नाय है सो इसी प्रकार करना चाहिये । १४५ - चर्चा एकसौ पैतालीसवीं प्रश्न- भगवानको पूजामें कैसे पुष्प चढ़ाना चाहिये तथा कैसे नहीं चाहिये ? समाधान -- भगवानकी पूजामें जल, थल आदिके सार सुगन्धित और मनोज्ञ ऐसे कमल, गुलाब आदि अनेक प्रकारके जैन शास्त्रों में कहे हुए पुष्प चढ़ाना चाहिये तथा जो पुष्प हायसे गिर गये हों, जमीनपर पड़ गये हों, जो किसीके भी पैरसे छू गये हों, किसीके मस्तक पर रखे गये हों, मलिन और अपवित्र वस्त्रमें रक्से गये हों, नाभिके नीचे प्रदेशसे छू गया हो, जो यवन ( मुसलमान ) आदि तुष्ट जनोंके द्वारा स्पर्श किये गये हों और जो कीड़ोंसे दूषित हों। ऐसे पुष्प कभी नहीं चढ़ाना चाहिये । इसके सिवाय पुरुषोंके दो तीन भाग कभी नहीं करने चाहिये । भावार्थ- मोतिया, मोगरा, कुन्ब आदिके पुष्पों में बो तीन चार पुष्प निकलते हैं सो उनको अलग-अलग नहीं करना चाहिये। जैसाका तैसा ही चढ़ाना चाहिये । पूजाके लिये फूलोंको कलियाँ कभी नहीं निकालनी चाहिये अर्थात् पूजामें कलियां नहीं चाहिये। पूरा पुष्प हो चढ़ाना चाहिये। ये लोग 2037 [
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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