SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 169
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अक्षत मावि द्रव्योंमें "ये अरहंत परमेष्ठी हैं अथवा सिद्ध परमेष्ठी है" इस प्रकार मंत्रपूर्वक त्यापमा ! करना वा “आह्वान सिष्ठ ठः ठः स्थापनं मम सलिहितो भव भव वषट, इत्यादि मंत्रोंसे अक्षत वा पुष्पोंमें। सागर । स्थापना करना और उसकी अष्ट द्रव्योंसे पूजा करना सो असद्भाव अथवा अतदाकार स्थापना निक्षेप है। सो १४७ ही लिखा है अक्खय वराउ ओव्वा अमुगोए सुत्तिणय बुद्धीए । सकप्पउणवयणं एस विणेया असभावा ॥ ३८५ ॥ इस प्रकार सद्भाव और असद्भावके भेदसे स्थापना पूजा दो प्रकार है। यहाँपर कुछ लोग ऐसा भी। कहते हैं कि जो तीर्थङ्कर केवली भगवान् साक्षात् समवशरणमें विराजमान हैं उनकी पूजा करना सो तथाकार। पूना है । तथा उनकी प्रतिमाको पूजा करना अतदाकार पूजा है क्योंकि तीर्थङ्करको प्रतिमामें यथोक्त रीति न नहीं होता । भावारीएको धाई, शरीरमा नर्ग, सर्पके फणा अथवा सर्पके स्कन्धका सम्बन्ध होता, कर्ण तथा और भी अनेक प्रकारके चित्र प्रतिमा तीर्थकरके स्वरूपसे विपरीत रूप दिखाई पड़ते हैं। इसलिए । प्रतिमा तदाफार नहीं है किन्तु अतवाकार है । और इनकी पूजा भी अतदाकार पूजा है। ऐसा कहते हैं सो यह सब शास्त्र विरुद्ध है । इस प्रकार दो प्रकारको स्थापना पूजा बतलाई । जो अरहन्त भगवान् केवलज्ञानसे सुशोभित समवशरणमें विराजमान हैं उनकी जल-फल आदि आठों । A RATचायानाला -AEPRISESAMELHI पूजामें आह्वान, स्थापना, सन्निधिकरण किया जाता है. वह स्थापना निक्षेप नहीं है क्योंकि स्थापना निक्षेप "यह वही है" ऐसा संकल्प किया जाता है परन्तु आह्वान, स्थापना और सन्निधिकरणमें "यह वही है" ऐसा सल्ल नहीं होता, किन्तु वहा तो एक आदर सत्कारको विशेष रीति है । यदि यह विधि न की जाय तो पूजामें कमी समझी जाती है। इसीलिए साहान, स्थापन आदिको पूजाके अङ्गों में बतलाया है। पूजाके पांच अङ्ग बतलाये हैं--आह्वान, स्थापन, सन्निधिकरण, पूजा और विसजन । पूजा अभिषेक पूर्वक होती है इसलिये अभिषेकको मिलाकर पूजाके छ: अंग हो जाते हैं। ये सब भेद श्रीयशस्तिलकचम्पूमें लिखे हैं। असल में तदाकार प्रतिमाकी पूजा करना तदाकार स्थापना है और शतरंजमें हाथी, घोड़ाकी कल्पना कर गोट बनाना अथवा क्षेत्रपालादिकको अतदाकार मूर्ति बनाना अतदाकार स्थापना है। २. ऊपर जो स्थापनाके भेद बतलाये हैं उससे भी यह कथन शास्त्रविरुद्ध सिद्ध होता है। -III-AS nama 8 [१७
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy