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॥ अथातः संप्रवक्ष्यामि गृहविम्बस्य लक्षणम् । एकागलं भवेच्छे ष्ठं व्यंगुलं धननाशनम् ॥
व्यंगुले जायते वृद्धिः पीडा स्याच्चतुरंगुले। पंचांगुले तु वृद्धिः स्यादृद्वेगस्तु षडंगुले सागर । सप्तांगुले गांवृद्धिः हानिरष्टांगले मता । नवांगुले पुत्रवृद्धिर्धननाशो दशांगुले ॥ ११७ .
एकादशांगुळ शिवं सर्वकामार्थसाधनम् । एतत्प्रमाणमाख्यातमत्तरूद्धर्व न कारयेत् ॥ नासामुखे तथा नेत्रे हृदये नाभिमंडले। स्थानेषु व्यंगितागषु प्रतिमां नैव पूजयेत् ॥
११०-चर्चा एकसौ दशवीं प्रश्न--सीसरे मिश्र नामके गुणस्थानमें मरण नहीं है और न अन्य गतिको आयुका बंध ही होता । है। सब फिर वह तीसरे गुणस्थान बाला जीव गतिबंधके बिना अन्यमतिमें किस प्रकार गमन करता है ?
समाधान--सम्यक मिथ्यात्व प्रकृति के उदयसे तीसरे मिश्र नामके गुणस्थानमें रहनेवाले जीवने पहले। है या तो मिथ्यात्वके साथ आयुका बंध किया होगा या सम्यक्त्व के साथ आयुका बंध किया होगा । यदि मिथ्यात्व
के साथ आयुका बंध किया हो तो वह मिथ्यात्व गुणस्थानमें जाकर मरण करता है यदि उसने सम्यक्त्व साथ आयुका बंध किया हो तो वह चौथे गुणस्थानमें जाकर मरण करता है । भावार्थ--जो पहले सम्यग्दर्शनके साथ आयुबंध किया है तो चौथे गुणस्थानमें मरण कर शुभ गति प्राप्त करता है। यदि उसने मिथ्यात्व । गुणस्थानमें बंध किया हो तो यह मिथ्यात्व में ही मरण कर अशुभ गतिमें जा उत्पन्न होता है। ऐसा श्रीगोम्मटसारमें प्ररूपणाधिकारके गुणस्थानाधिकारमें लिखा है । यथा
सो संजमंण गिण्हदि देसजमं वा ण बंधदे आउं। सम्म वा मिच्छं वा पडिवज्जिय मरदि णियमेण ।। २२ ।। सम्मत्तरिछपरिणामेसु जहि आउगं पुरा बद्धं । तहि मरणं मरणंतसमुग्धादो वि य ण मिस्सम्मि ॥ २३ ॥
१११-चर्चा एकसौ ग्यारहवीं प्रश्न--क्षयकश्रेणी चढ़नेवाले योगीश्वरोंके श्रेणी चढ़ते समय कौनसा संहनन होता है ?
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