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________________ शोषणा, कालाबाजारी, संग्रहबती, परस्त्रीगमन, वेश्यागमन,म द्यपान, मांस भक्षण, रात्रिभोजन, अमक्ष भोजन, ईया-दुष, मात्सर्य, आदि अशुभ भावों का त्याग बारके हिसा, सत्य, अचार्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, रामता शांती, शांत, ऋजुता, मृदुता, विश्वमैत्री, उदारता, वात्सल्य, गुणानुराग धर्मानुराग, अनुकम्मा आदि शुग भावों को धारण करना चाहिये । इनमे सतत तद होकर ना आत्मा में विशेष निर्मलता आती है, तब वह महा संयमी आत्मानंद प रस को निविकल्प होकर आस्वादन करता है। उस समय व्रत अन्नतों का विकल्प स्वयमेब छट जाता है, जिस प्रकार रस अवस्थामे पूर्व की अवस्थाएं नहीं रहती है। शंका:- आम रस के लिये बीज, वृक्षादि की क्या आवश्यकता हे वाजार रो पका आम खरीदकर लाकर उससे रस निकालकर अथवा रस खरीदकर लाकर रस का आस्वादन कर सकते है। समाधान:- हे भाई धर्म कभी भी रूपयं के माध्यमसे नहीं खरीदा जा सकता है। धर्म को तो आद्योपान्त स्वयमेव हो आचरण करके प्राप्त कर सकते है । भाध्यात्मिक सम्राट अमलचन्द्र सूरी अमृतकलश में कहते य एव मुक्त्वा नय पक्षपात, स्मरुए गुप्ता निवसन्ति नित्यम् । विकल्प जालपच्युत शांतचित्तास्त एवं साक्षावमृतं पिबन्ति ॥२४।। ( अमृत कलश ) जो समस्त प्रभार नय पक्षबात से रहित होकर समस्त संकल्पविकल्प जालों से रहित होकर शांत चित्त में स्वरूप में ही सतत निवास करते है बे साक्षात् आत्मानंद रूप अमृत का पान करते है। जो समयसार रुप शुद्ध आत्म द्रव्य है वह समस्त नय पक्ष से अतीत है। देवसेनाचार्य इसी प्रकार आध्यात्मिक प्रधान्य नय चक्र को समाप्त करते हुए लिखते है:निश्चयध्यवहारयोरविनामावित्व निर्णीति कथनो नाम तृतीयोऽध्यायः समाप्त: । "ट्टारक श्री देवसेन आचाय ( कम रुप शत्रु को नाश करने वाले विशेष ज्ञानी मुनि )
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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