________________
भाव-संग्रह
पढ कर दरों दिशाओं में सरसों क्षपण करनी चाहिये यह शुन्य बीज है, इस प्रकार दसों दिशाओं का बंधन करना चाहिय । फिर मंत्र को जाननेवाले श्रावक को मंत्र पूर्वक कान और कर न्यास करना चाहिये। इसकी विधि इस प्रकार है- ओं -हीं दनाय नमः शिरसि, आंनटों निखाय वषट् कवचाय हुं अस्राय फट यह मंत्र पाठ कर पथक पथक मंत्रां में मस्तक का स्पश करना चाहिय । चटो का पक्ष वार चाटी ने गांठ बांधनी चाहिये । फिर कंधे से लेकर समरत शरीर को दानाहायों में स्पश कर फिर दोनों हाथों से ताली बजाकर शब्द करना चापिं । फिर परमात्मा का ध्यान करना चाहिये । पान के मंत्र हैं- ओ श्री गमों अरहताण अहंदभ्यो नमः इसका इकई बार अपना चाहिय । ओं न्हों णमो सिद्धां सिद्धेभ्यो नमः स्वाहा इसको भी इकईस बार जपना चाहियं 1 इन मत्रों के द्वारा पशासन से कायोत्सर्ग पूर्वक ध्यान करना चाहिये । इस प्रकार सकली करण विधान के द्वारा अपना मन शद्ध करना चाहिय । शौच दो प्रकार है एक वाह्य और दुसरा आभ्यंतर । जल मिट्टी आदि से तो बाह्म सौच करना चाहिब और मंत्र से आभ्य - तर शौच करना चाहिये यह सकलो करण विधि है।
पावेण सह संदेह झाणो उज्झतयं खु चिततो । रंधज संतीनदा पच परभेट्ठिणामाय ।। पापेन सह स्वदेहं ध्याने दह्यमान खलु चिन्तयन् । बध्नातु शान्तिमुद्रां पंच परमेष्ठि नाम्नीम् ।। ४२९ ।।
अर्थ- उस ध्यान में " मेरा शरीर मेरे पापों के साथ जल रहा है " एसा चितवन करना चाहिये और फिर पांचा परमेष्ठियों को वाचक एसो शांत मुद्रा बनानी चाहियं ।
अमयक्सरे णिवेसउ पंचसु ठाणेसु सिरसि परिक्रण । सा मुद्दा पुणु चितउ धाराहि समवयं अमयं ।। अमृताक्षरं निवेशयतु पंचसु स्थानेषु शिरसि धृत्वा । ता मुद्रां पुनः चिन्तयतु भारामिः सववमृतम् ।। ४३० ।।