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________________ आचार्य श्री देवसेन का परिचय स्वामी विद्यानदि ने इलोकवातिकालंकार मे यह लिखा है कि नयों का वर्णन विशेष रुप में जानना हो तो नयचक्र को देखो। इससे यह जाना जाता है कि जिस नयचक्र को आचार्य देवसेन ने बनाया है उससे पहले और कोई नयचक्र था, उसी का उल्लेख स्वामी विद्यानंदि ने किया है। जैसा कि नीचे लिखी वात से सिद्ध होता है__माइल्ल घपल के वृहत् नयचक्र के अंत की एक गाथा जो बम्बई प्रति में पाई जाति है यदि ठीक हो तो उससे इस बात की पुष्टि होती है, वह गाथा इस प्रकार है इसमीरणेण पोयं पेरियसतं जहा तिरं नर्से । सिरि देवसेन मुणिणा तह णयचक्क पुणो रइयं ।। इस गाथा का अभिप्राय यह है कि दुषमकाल रूपी आंधी से जहाज के समान जो नयचक्र चिरकाल से नष्ट हो गया था उस देवसेन मुनि ने फिर से रचा इससे विदित होता है कि देबसेन आचार्य के नयचक्र से पहले कोई नयचक्र था जो नष्ट हो गया था और बहुत संभव है कि देवसेन ने दूसरा नयचक्र बनाकर उसी का उद्धार किया हो ? उपलब्ध ग्रंथों में नयचक्र नाम के तीन ग्रंथ प्रसिद्ध है और माणिक चन्द ग्रंथमाला में तीनों ही नयचक प्रकाशित हो चुके है। १- आलाप पद्धति, २- लघु नयचक्र, ३- बहत् नयचक्र । इनमें पहला ग्रंथ-आलाप पद्धति संस्कृत मे है और शेष दो प्राकृत मे है । आलाप पद्धति के कर्ता भी देवसेन आचार्य है । डॉ० भांडार रिचर्स इंस्टियूट के, पुस्तकालय में इस ग्रंथ की एक प्रति है उसके अंत मे प्रति के लेखक ने लिखा है कि " इति सुख बोधार्थ मालयपद्धतिः श्री देवसेन विरचिता समाप्ता । इति श्री नयचक्रं सम्पूर्णम्' उक्त पुस्तकालय की सूची में भी यह नयचक्र नाम से ही दर्ज है। इसे नयचक्र भी कहते है और आलाप पद्धति भी कहते है । आलाप पद्धति के प्रारंभ मे लिखा है कि आलाप पद्धति वचन रसनानुक्रमेण
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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