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________________ भाव-संग्रह १७३ परिहार ३ व्यवहारित्व गुण- जो सामायिक, छेदो प्रस्थापना, त्रिशुद्धि: सूक्ष्म मांपराय और यथाख्यात इन पांच प्रकार के चारित्र को पालन करें तथा अन्य मुनियों से पालन करावें । ४ प्रकारकत्व गुण- समाधि मरण धारण करने वाले क्षपक साघु के लिये परिवार का काम करना उनकी परिचर्या करना प्रकारकता गुण है । ५ आपायापायोपदेकत्व गुण- आलोचना करने वाले मुनियों के चित्त में यदि कुछ कुटीलता भी हो तो भी उनके गुण दोष दोनों को प्रकट कर दोषों का स्पष्ट कर लेना । ६ उत्पीलक गुण - जिन मुनियों के हृदय में कुछ कुटिलता हो और उन्होंने अपने अतिचारों को अपने मन में छिपा रक्खा हो उन अतिचारों को भी अपनी कुशलता से बाहर प्रकट करा लेना । ७ अपरिस्राविता गुण- जिस प्रकार पीया हुआ रस बाहर नहीं निकलता उसी प्रकार किसी क्षपक मुनिने अपनी आलोचना में जो दोष कहे हैं उनको कभी प्रकट नहीं करना | ८ निर्वाचक गुण जो समाधिमरण धारण करने क्षपक साधु, क्षुधा तृषा आदि परीषहों से दुखी हो रहे हो उनके उस दुःख को अनेक प्रकार की कथा सुनाकर दूर करना और इनको समाधिमरण में दृढ करना । २ नग्नत्व गुण सूती ऊनी रेशमी वृक्ष के पत्ते छाल आदि सव प्रकार के वस्त्रों का त्याग कर नग्न वा दिगम्बर अवस्था धारण करना । १० उद्देशिकाहारत्याग गुण- जो उद्देशयुक्त आहार के त्यागी हो एवं अन्य श्रमणों के लिये किये हुए आहार के भी त्यागी हों । ११ शय्याधरासन विवर्जित गुण- जो शय्या पृथ्वी आसन सबके त्यागी हों उनका संस्कार आदि भी न करते हों । १२ राज पिंड ग्रहण विवर्जित गुण- जो राजा मंत्री सेनापति कोतवाल आदि का आहार न ग्रहण करते हों । १३ कृति कर्म निरत गुण- जो छहों आवश्यकों को स्वयं पालन करते हो तथा अन्य मुनियों से कराते हों ।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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