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माव-संग्रह
गिस्सेस कम्म मुक्को सो मुक्खो जिणवहि पएणतो। रायद्दोसाभावे सहाव थक्करण जीवस्त ।। नि:शेष कर्म मोक्षः स मोक्षः जिनवरैः प्रज्ञप्तः । रागद्वेषाभावे स्वभाव स्थितस्य जीवस्य ।। ३४६ ।।
अर्थ- जो जीव राग द्वेष का सर्वथा नाश कर देता है और अपने शुद्ध स्वभाव में स्थिर हो जाता है उस समय जो समस्त कर्मों का सर्वश्रा नाश हो जाता है उसको भगवान जिनेद्रदेव मोक्ष कहते है । मोक्ष बद्ध का अर्थ छूटना है । यह आत्मा जो अनादि काल से कर्मों से बंधा हुआ है वह जब राग द्वेष के अभाव होने पर और शुद्ध स्वभाव में बीन हीन पर समस्त कर्मों से छूट जाता है तब उसको मुक्त जोत्र कहते है । मुक्त होने पर कर्मों के साथ साथ शरीर भी नष्ट हो जाता है।
सो पुण दुविहो भणिओ एक्कदेसो य सवमोक्खो य । देसो चउघाइखए सब्यो णिस्सेस णासम्मि ।। स पुनः द्विविधो भणितः एकवेशश्च सर्वमोक्षश्च । देशः चतुर्घातिक्षये सर्वः नि:शेषणाशे ।। ३४७ ।।
अर्थ- वह मोक्ष दो प्रकार है । एक देश और सर्वदेश । चारों प्रातिया कर्मों का नाश हो जाना एक देश मोक्ष है और समस्त कर्मों का नाश हो जाना सर्वदेश मोक्ष है । भावार्थ- इन समस्त कर्मों में धानिया कर्म सब में प्रबल है । इन का जब नाश हो जाता है तब शव कर्मों का नाश अवश्य ही होता है। इनमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है। तथा घातिया कर्मों के नाश होने पर यह जीव वीतराग सबज्ञ हो जाता है। अनंत दर्शन अनत ज्ञान अनंत सुख और अनंत वीर्य ये चार अनंत चतुस्टचय प्रगट हो जाते है और फिर वे अनंत चतुष्टया अनंतानंत काल तक रहते हैं। इन्ही कारण से वे भगवान एक देशमुक्त कहलाते है । जब तक आयु कर्म रहता है तब तक वे उस अवस्था में रहते है आयु कम. पूर्ण होने पर वे अवश्य मुक्त हो जाते है।
इस प्रकार मोक्ष का स्वरुप कहा। अब आगे अंत मे फिर सम्यग्दर्शन का स्वरुप कहते है ।