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________________ भाव-सग्रह अर्थ- राजगृह नगर मे एक अंजन नाम का चोर था वह निशकित अंग मे प्रसिद्ध हुआ है । तथा चंपापुर नगर में एक सेठ की पुत्री अनंतमती थी वह निःकांक्षित अग मे प्रसिद्ध हुई है। णिविदिगिछो नाग रद्दश्यणो णाम रखर गयरे । रेषद महुराणथरे अमूढ दिट्ठो मुयश्वा ।। २८१ ॥ निविचिकित्से राजा उद्दायनो नाम रौरवे नगरे । रेवती मथुरा नगरे अमूढदृष्टिमन्तध्या ।। २८१ !! अर्थ- रौरव बा रुद्रवर नगर का उदायन नाम का राजा निविचिकित्मा अंग में प्रसिद्ध हुआ है और मयुरा नगर मे रेवती रानी अमूढष्टि अंग में प्रसिद्ध हुई है। ठिदिकरणमुणपउत्तो मगहा गयरन्मि वारिसेणो हु । हस्थिणिपुरम्मिणयरे वच्छल्लं बिरहुणा रइयं ।। २८२ ॥ स्थितिकरणगुणप्रयुक्तो मगधनगरे वारिषेणो हि । हस्तिनापुरे नगरे वात्सल्यं विष्णुना रचितम् ।। २८२ ।। अर्थ-- मगध नगर में वारिषेण नाम का राज पुत्र स्थिति करण अंग मे प्रसिद्ध हुआ है । हस्तिनापुर नगर में विष्णुकुमार मुनि वात्सल्य अंग में प्रसिद्ध हुए है। उवगृहणगुण जुत्तो जिणदत्तोणाम तामलिसिणधरीए । वज कुमारेणकया पहावणा चेव महराए ।। २८३ ॥ उदहन गुणयुक्तो जिनदत्तो नाम ताम्रलिप्स नगर्याम् । वनकुमारेण कृता प्रभावना चैय मथुरायाम् ।। २८३ ।। अर्थ- ताम्रलिप्त नगर का रहने वाला सेठ जिनदत्त उपगहन अग मे प्रसिद्ध हुआ है और मथुरा नगर में वज्रकुमार मुनि ने जैन धर्म की प्रभावना कराकर प्रमावना अंग में प्रसिद्ध पाई थी इन सब महापुरुषों की सुन्दर कथाएं अन्य शास्त्रों से जान लेनी चाहिये । एरिस गुण अदछ जुयं सम्मत्तं जो बरेइ विचित्तो । सो हवद सम्मदिछी सद्दहवाणोपपत्थाचं ॥ २८४ ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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