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________________ भाव-सग्रह अर्थ- जो भगवान न तो तिलोनमा के द्वारा टग जाते है न अपने तपश्चरण से कभी भ्रष्ट होते है न कामसवत होकर चार मग्य बनाते है और न रीछिनी के साथ कामासक्त होते है एसे वे अरहत दद हो ब्रह्मा कहलात है। भावार्थ- भगवान अरहंत देव ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश कहलाने है वे भगवान मोक्ष मार्ग का उपदेश देते है इसलिये ब्रह्मा कहलाते । अपने केवल ज्ञान के द्वारा लोक अलोक सबमें व्याप्त रहते हैं, अपने ज्ञान के द्वारा सबको जानते है इसलिये विष्णु कहलाते है और वे सदात्कृष्ट देव है इन्द्रादिक देव भी आकर उनको नमस्कार करते है इसलिय वे महादेव कहलाते है । अरहंत देव के सिवाय और कोई भी ब्रह्मा विष्णु महादेव नहीं है। आग अरहंत देव के कहे हुए पदार्थों को कहते है । तेणुत्त पवपयत्या अण्णे पंचस्थिकाय छद्दष्वा । आणाए अधिगमेण य सदहमाणस्स सम्मत्तं ।। २७८ ।। तेनोक्तनव पदार्थान अन्याति पंचास्तिकायषड़वध्याणि । आजयाधिगमेन च श्रद्दधानस्य सम्यक्त्वम् ॥ २७८ ।। अर्थ- भगवान जिनेंद्र देव ने ना पदार्थ बतलाये है पांच अस्तिकाय बतलाये हैं और छह इव्य बतलाय है इन समस्त पदार्थों को जो भगवान की आज्ञा प्रमाण श्रद्धान करता है अथवा इन सबका म्वरूप जानवार श्रद्धान करता है उस श्रद्धान को सम्यग्दर्शन कहते हैं । भावार्थ- ये सब पदार्थ भगवान जिनेंद्र देव ने कहे हैं । तथा इनका स्वरूप भी भगवान जिनेंद्र देव ने कहा है भगवान जिनेंद्र देव वीतराग सर्वज है । जा वीतराग सर्वज्ञ होता है वह कभी मिथ्या उपदेश नही देता । इस प्रकार भगवान की आज्ञा प्रमाण जी तत्वों का श्रद्धान करता है उसको आज्ञा सम्यक्त्व कहते है तथा तत्वो का यथार्थ स्वरूप समझकर श्रद्धान करता है वह अधिगम सम्यक्त्व है। आग सम्यग्दर्शन का और भी स्वरूप कहते हैं ।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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