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________________ भाव-संग्रह आगे क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन को कहते है। उदयाभाओ जत्थ य पयडीणं ताण सववादोणं । छण्णाण उवसमो विय उदओ सम्प्रतं पयडोर ।। २६८ ।। उदयाभावो यत्र च प्रकृतीनां तासां सर्वधातिनोनाम् । षष्णां उपशमोपि च उदयः सम्यक्त्व प्रकृतेः ।। २६८ ।। खय उवसम पउतं सम्मत्तं परम वोयराएहि । उपसमिय पंक सरिस णिच्चं कम्मक्खवण हेज ।। २६९ ।। क्षयोपशमं प्रोक्तं सम्यक्त्वं परम वीतरागैः । उपशात पंक सदृशं नित्यं कर्म क्षपण हेतुः ।। २६९ ।। अर्थ-- सम्यग्दर्शन को घात करने वाली सात प्रकृतियां जो ऊपर वतलाई है -7 में ग अनंतानुलंगी मधमान | लोभ और मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व ये छह प्रकृतियां सर्वघाती है और सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व नाम की एक प्रकृति देश पाती है। ऊपर लिखी छह प्रकृतियां सम्यग्दर्शन को घात करने वाली है इसलिये वे सर्वघानी कहलाती है और सम्यक् प्रकृति मिथ्यात्व नामकी प्रकृति सम्यग्दर्शन का घात नहीं करती किंतु उसमे चल मलिन और अगाढ इन दोषों को उत्पन्न कर देती है। परिणामों मे चंचलता होने को चल दोष कहते है, मलिनता होने को मलिन कहते है और अत्यंतगान श्रद्धान नहीं होना अगाढ दोप है। जब ऊपर लिखी हुई सर्वघाती छह प्रकृतियों का उदया भावी क्षय हो जाता है अर्थात् छहों प्रकृतियों का उदय नहीं रहता तथा आगे उदय होने वाली इन्हीं छह प्रकृतियों के उपशम होने से और देश घाती सम्यक प्रकृति मिथ्यात्व प्रकृति का उदय होने से क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन होता है। ऐसा भगवान वीतराग सर्वज्ञ देवने कहा है। जिस प्रकार किसी वन मे मिट्टी मिला पानी रक्खा हो तथा उसमें फिटकरी डाल दी जाय तो उसकी मिट्टी नीचे बैठ जाती है पानी निर्मल हो जाता है । इसी प्रकार जिस जीव के ऊपर लिखी हुई सानों प्रकृतियों का उपशम हो जाता है उसके औपशमिक सम्यग्दर्शन हो जाता है परन्तु जिस प्रकार हवा चलने पर वह निर्मल पानी फिर गदला हो जाता है उसी
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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