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________________ [९) परन्तु च 'द्र अगली में नहीं, है, इसी प्रकार शास्त्र में परम तत्त्व का सकेन है । परम तत्व को दिखाता है किन्न परमतत्त्व नहीं है। जैसे पाणी के पात्र में सूर्य बिम्ब दिखाई देता है किन्तु मूर्य बिम्ब नहीं है किन्तु बहुत दूर में है उसको प्राप्त करने के किये तदनुकूल क्रिया करना आवश्यक है । जैस मानचित्र में देश-विदेशों का चित्र है परतु हम उस में ही देश विदेशों को इंग तो उसमें देश-विदेश नहीं मिल सकता है। उसी प्रकार शास्त्र में तत्वों का मान चित्र है किन्तु बधार्थ तन्य उनमें नहीं है उस सकत के अनुसार हम सम्यक क्रिया करेंगे तो उस ताव को प्राप्त कर सकते है जैस रोड । रास्ते) पर माईल स्टोत में नगरों का नाम एवं दुरं। एवं दिग् सूचित रहता है परंतु उस माईल स्टोन को पकाई कर बैठने पर उन - उन मगरों में नहीं पहुँच सकते है । उस भाईल स्टोन को छोडकर एव गमन करने पर ही उन-उन नगरों को प्राप्त कर सकते है उसः प्रकार शास्त्र में मोक्षादि सत्त्वों का वर्णन है उस वर्णन के अनुसार दि सम्पक आचरण करेगें तब मोक्षाष्टि तत्त्व की प्राप्ती हो सकती है। जैसे एक विद्यार्थी वाणिज्य विद्या | कॉमर्स' ) में स्नातकोत्तर ( 11. Con. ) होने के बाद भी वह कुपाल व्याग नहीं हो सकता है गणित हा का विद्यार्थी होने मात्र से वह सेठ नहीं बन सकता है। उम 'बधा के अनुकूल छपार करने पर ही धनोपार्जन कर सकता है। एक कुशल निरक्षर ब्यापारी व्यापार के माध्यम से सेठ बन सकता है। परन्तु साक्षरो वाणिज्य विद्या विशारद भी उस निरक्षरी सेठ का नोकर होकर कार्य करता है । अख्खर.हि जि गम्विया कारणु ते ण मणति । चंस विह था डोम जिम परहन्थडा धुणंति ।। पाहुड दोहा मुनि रामगिह कारण को नहीं जानने वाला रज मनुष्य का ज्ञान व्यर्थ है उसरों वह आत्मोन्नति नहीं कर सकता है। यह स्वावलंबी सप आत्मावलंबी नहीं हो सकता है। जैसे डोम ब्रांस से :हित होने के कारण अपना खेल दिखाने स्प कार्य नहीं कर सकता है 1 केवल हाथ धुनते रहता है उसी प्रकार शास्त्र के रहस्य को हृदयंगम नहीं करने वाला, आचरण में नहीं लाने वाला केवल हाथ मलते रहता है। सस्थं जाणं ण हदि जम्हा सत्यं ण याणदे किचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सत्थं जिणा विति ।। सद्दी गाणं ण हनदि जम्हा सहो ण याणदे किचि । तम्हा अण्णं णाणं अण्णं सई जिणा विति ।। स. सा./ गा. ४१४-४१५
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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