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________________ भाव-मंत्रह रखना इन्द्रिय संयम है । ये दोनों प्रकार के संयम पूर्ण रूप से स्त्रियों के नही पल सकते । कोकि मन वचन काप्न कृत कारित अनुमोदना से समस्त प्राणियों की हिता का त्याग होना चाहियं परंतु उसके शरीर से सम्भूर्छन मनुष्यों की हिंसा होती है इसलिये पूर्ण संयम उनसे कभी नहीं हो पा सकता है । तथा विना मुंयम के मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती । इसलिये स्त्रियों को उसी जन्म में उसी स्त्री पर्याय मे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। स्त्रियां अपने योग्य आर्यिका के व्रत धारण कर स्त्री लिंग को छेद कर देव हो सकती है और फिर वहां से आकर मनुष्य पर्याय में उत्तम मनुल्य हो सकती है और फिर तपश्चरण कर उस मनुध्य पर्याय मे मोक्ष जा सत्राती है । सोला का जीव वा अन्य कितनी ही स्त्रियों के जं व इसी प्रकार मोक्ष प्राप्त करेंगे । आगे इस शंकाकार इस विषय में प्रश्न करते हैं - अहवा एयं वयणं तेसि औधो ण होइ कि जीवो। कि पत्थि गाणदसण यवओगो चेयणा तस्स ॥ ९६ ।। अथवा एतद् बचनं तासां जोवो न भवति कि जोवः । कि नास्ति ज्ञानदर्शनं उपयोगः चेतना तस्य ।। ९६ ।। अर्थ- कदाचित् काई यह प्रश्न करते हो कि क्या स्त्रियों का जीव जीव नहीं है ? क्या उन स्त्रियों को ज्ञान दर्शन नहीं है ? अथवा उनके क्या उपयोग नहीं है अथवा चेतना नहीं है ? स्त्रियों के क्या नहीं है जिससे कि वे मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती । भावार्थ- मनुष्यों के समान ही उन स्त्रियों के भी जीव है उनके भी मान दर्शन है उपयोग है चेतना है। इसलिये वे भी मनुष्यों के समान ही मोक्ष जा सकती है। आगे इसी का उत्तर देते है। जइ एवं तो इत्यि धीवरि. कल्लालि वेसमईणं । सम्वेसिमवि जीवो सयलाओ तरिहि सिज्मति || ९७ ॥ याध तहि स्त्री धोवरी कल्लारिका वेश्यादीनाम् । सर्वासामस्ति जीवो सकलास्तहि सिहयन्ति ।। ९७ ॥
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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