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________________ ।। श्री वर्धमानाय नमः ॥ आचार्य श्री देवसेन का परिचय श्रीमान् उद्भट विद्वान दि: जैन वीतराग महषि आचार्य देवसेन भाव संग्रह के कर्ता महोदय का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है आचार्य देवसेन ने अपने बनाये हुए ग्रन्थ संग्रह में अपने विषय में यह लिखा है सिरि विमलसेणगणहर सिस्सो णामेण देवसेणु ति । अहुजणवोहणत्थं तेणेयं विरइन सुत्तं ॥ अर्थात् श्री विमलसेन गणधर (गणी) के शिष्य देवसेन है। उन्ही देवसेन आचार्य ने अज्ञ जनों को बोध कराने के लिये यह भाव संग्रह सूत्र ग्रन्थ रचा है उसमे भी उन्होंने अपना परिचय इस प्रकार दिया है पुश्वारिय कथाई गाहाई संधिऊण एयत्थ । सिरि देवसेण गणिणा धाराए संवसंतेण ॥ ४९ ।। रचओ दसणसारो हारो भव्वाण णवसए नयए। सिरि पासणाह गेहे सुविसुद्धे माहसुन दसमीऐ ।। ५० ।। अर्थात् पूर्वाचार्यों की रची हुई गाथाओं को एक स्थान में संग्रह करके श्री देवसेन गणि ने धारा नगरी में निवास करते हुए पार्श्वनाथ भगवान के मंदिर मे माघ सुदी दशमी विक्रम सम्वत् ९९० मे यह दर्शनसार ग्रन्थ रचा । इस उपर्यवत कथन से दो बातें सिद्ध हो जाती है । एक तो यह कि आचार्य देवसेन स्वयं भी गणी थे अर्थात् गण के नायक थे और विक्रम संवत ९९० में ये हए है। इन्होंने अन्य अपने बनाये हुए ग्रन्थों में अपना परिचय नहीं दिया है । और न उन ग्रन्क्षों की रचना का समय बताया है।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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