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________________ ७९ अरहंत शक्ति से तीन लोकका क्षुभित करनेवाला सातिशय पुण्य स्वरुप और परंपरा मोक्ष के लिये निश्चित कारण है इसी प्रकार तिर्थनाम कर्म बंधता है । जिन्होंने घातियां कर्म को नष्ट कर केवलज्ञान के द्वारा सम्पुर्ण पदार्थो को देख लिया है । वह अरहंत अथवा ८ कर्मों को नष्ट करनेवाले सिद्ध और धातियां कर्मों को नष्ट करनेवालों का नाम ( अरहंत सकल परमात्मा ) है क्योंकि कर्म शत्रू के नाश के प्रति दोनों में कोई भेद नहीं है उन अरहंतों में नो गुणानुराग रुप भक्ति होती है वह ही अरहंत भक्ति कहलाती है । इस अरहंत भक्ति से तीर्थंकर प्रकृतिका बंध होता है। शंका:- केवल अरहंत भक्ति में अन्य भावनाओ की संभावना कैसे है ? ( योंकि १६ भावनाओं से तीर्थकर नाम कर्म बंत्रता है । तो केबल अरहंत भक्ति से किस प्रकार बंध हो सकता है ? ) समाधान:- अरहत के द्वारा उपदिष्ट अनुष्ठान के अनुकूल प्रवृत्ति करने या उस अनुष्ठान के स्पर्शो को अरहंत भक्ति कहते हैं 1 और यह वर्शन विशुद्धि आदि के बिना ऐसा संभव नहीं है क्योंकि ऐसा मानने में विरोघ है । अतएव अरहंत भक्ति तिर्थकर प्रकृति बंध का ११ वा कारण उपरोक्त सिद्धांत से सिद्ध होता है कि जहां अरहंत भक्ति है वहां दर्शन विशुद्धि विनय संपन्नता आदि संपूर्ण भावना का सद्भाव है क्योंकि अरहंत भक्ति जब होती है जब हृदय में सम्यग्दर्शन के विना यथार्थ अरहंत भक्ति हो ही नहीं सकता है । उपरोक्त समस्त सिद्धांत से सिद्ध होता है । देव दर्शन अरहंत' भक्ति सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति के लिये कारण पाप कर्मों की निर्जरा के लिये कारण निधत्ति, निकाचित वध -- अन्यत्व - अन्य सर्वदा अन्य रहे ताते दुःख साधना । अप्पा सदा अप्पा रहे ताते सुख खजाना || - अशुचि - सर्व अशुचि की देह गेह सर्व अशुधि का यंत्र । भक्त वस्तु मल होय स्पर्वा वस्तू असार ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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