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________________ । वे जिन प्रतिमाएँ, चरमधारी, नागकुमारों के ३२ युगलों औ पक्षों के ३२ गुगलों सहित पृथक् पृथक् एक एक गर्भगृह में सदृश पवित से भली प्रकार शोभायमान होती है। उन जिन प्रतिमाओं के पार्श्वभाग मे श्रीदेवी, श्रुतदेवी, सर्वान्ह यक्ष और सानत्कुमार यक्ष के रुप अर्थात प्रतिमाएं है, तथा अष्टमंगल द्रव्य भी होते है । झारी, कलश, दर्पण, पंखा, ध्वजा, त्रामर, छत्र और ठोना ये ८ मंगल द्रव्य है । ये प्रत्येक मंगल द्रव्य १०८, १०८ प्रमाण होते है ।। ९८७-९८८-९८९ ।। तिलोयपण्णनि में कहा है : सिरिसुबवेवीण तहा सव्वाह सणक्कुमार मक्खाणं । वाणि पत्तेवक पडिवर रयणाइ रहवाणि ॥ १८८१ ॥ ( चतुर्थ अधिकार ) प्रत्येक प्रतिमा के प्रति उत्तम रत्नादिकों से रचित श्रीदेवी, श्रुत । देवी तथा सर्वाह व सानत्कुमार यक्षों की मूर्तियां रहती है । कत्रिम चैत्य: प्रातिहार्याष्टकोपेतं, सम्पूर्णावयवं शुभम् । भावरूपानु बिद्धांग, कारयेव बिम्बमहता ।। ६२ ।। प्रालिहाविना शुद्ध, सिद्धं बिम्बमपीदृशः । सूरीणां पाठकानां च, साधूनाम च यथागमम् ॥ ७० ।। ( बसुनन्दि प्रतिष्ठा पाऊ तृतीय प्रतिच्छय ) अष्ट प्रातिहार्य से युक्त सम्पूर्ण अवपनों से सुन्दर तथा जिनका - पुद्गल - फास रस गंध वण्ण पुरण गलण येव । सद्द छाया पिकास पुग्गल बयाणं बम्म ।। २७ ।। - धर्म - अमुत्त पिच्च सुद्धं लोयायासे प्पमाण द्विदं । गई परिणयाणं जीव रवीणं गमणे णिमित्त धम्म ।। २८ ।।
SR No.090104
Book TitleBhav Sangrah
Original Sutra AuthorDevsen Acharya
AuthorLalaram Shastri
PublisherHiralal Maneklal Gandhi Solapur
Publication Year1987
Total Pages531
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size9 MB
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